नदियों के कारण ही भारतीय संस्कृति अक्षुण्ण है: मालिनी अवस्थी

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में जारी छठे नदी उत्सव के अंतिम दिन 27 सितंबर को नदियों से जुड़ी विविध अभिव्यक्तियों, शोध, और कलात्मक प्रस्तुतियों का जीवंत चित्रण देखने को मिला। उत्सव के विभिन्न स्थलों- समवेत ऑडिटोरियम, उमंग कॉन्फ्रेंस हॉल, बोर्ड रूम और दर्शनम् गैलरी में दिनभर दर्शकों की सहभागिता देखने लायक रही। समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केन्द्रीय कार्यालय मंत्री गोपाल आर्य और अध्यक्षता की प्रो. के. अनिल कुमार ने। सत्र का संचालन किया नदी उत्सव के संयोजक अभय मिश्रा ने।

मालिनी अवस्थी का सम्मान करते प्रो. के. अनिल कुमार
Written By : डेस्क | Updated on: September 27, 2025 11:04 pm

नदी उत्सव के तीसरे दिन का सबसे बड़ा आकर्षण था, सुप्रसिद्ध लोकगायिका मालिनी अवस्थी का ‘नदी और गीत’ विषय पर सारगर्भित व्याख्यान। अपने व्याख्यान में उन्होंने लोकगीतों और लोकजीवन में नदियों के महत्त्व के बारे में बताया। उन्होंने लोकगीत सुनाने के बाद उनकी सुंदर व्याख्या की। साथ ही श्रोताओं की मांग पर पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ का टाइटल गीत तथा बटोही गीत ‘सुंदर सुभूमि भैया भरत के देसवा में’ गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

उन्होंने कहा कि हमारे लोकगीतों में नदियां केवल बहती जलधाराएं नहीं हैं, बल्कि उनका मानवीकरण किया गया है। वे नायिका बनकर प्रेम, विरह और लालसा का स्वर रचती हैं, तो कभी मां, बहन और बेटी के रूप में जीवन को पोषित करती हैं। लोककथाओं और गीतों में उनका यह मानवीकरण उन्हें श्रद्धा, संवेदना और भावनाओं का प्रतीक बना देता है। इसी कारण नदियां हमारे लिए मात्र जल का स्रोत नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और चिरंतन प्रेरणा की धारा हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा, “भारत का सौभाग्य है कि नदियां हैं और उसी से भारतीय सांस्कृतिक सत्ता अक्षुण्ण है।”

समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में गोपाल आर्य ने कहा कि समुद्र मंथन के बारे में हमने सुना है। उसमें 14 रत्न निकले थे। लेकिन यहां नदी उत्सव में नदी मंथन हो रहा है। इसमें से भी कई रत्न निकले हैं। उन्होंने कहा, ये नदी उत्सव केवल उत्सव नहीं है, एक मंथन है। नदी जिस प्रकार बहती है, उसी प्रकार ये नदी उत्सव भी बह रहा है। नदी केवल प्रवाहित होने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि नदी हमारी संस्कृति है।

इससे दिन की शुरुआत दीपिका बंसल द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘एक दिल्ली यमुना की’ से हुई, जो यमुना और दिल्ली के रिश्ते पर एक भावपूर्ण दास्तान पेश करती है। इसके बाद बहुभाषी और बहुआयामी फिल्मों- ‘ऑफ कर्सेज एंड बिट्रेयल’, ‘समयाडु हरिवु’, ‘कावेरी- रिवर ऑफ लाइफ’, ‘होकेसरार- द क्वीन ऑफ वेटलैंड’, ‘कासाद्रु’. ‘बॉयज फ्रॉम द ग्रोव,’ ‘कालिंदी- ऐन अर्बन लेजेंड’ और ‘द लॉस्ट मेलोडी ऑफ मुसी’ ने भारतीय नदियों की सांस्कृतिक, पारिस्थितिकीय और भावनात्मक विरासत को सशक्त रूप में दर्शाया। इसके बाद, ‘लद्दाख- लाइफ अलॉन्ग द इंडस’ की विशेष स्क्रीनिंग की गई।

इसके साथ ही, उमंग कांफ्रेंस हॉल में राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत ‘रिवरस्केप डायनेमिक्स, चेंजेंस एंड कंटिन्युटी’ (नदी परिदृश्य गतिशीलता: परिवर्तन और निरंतरता) के अंतर्गत तीन सत्र सम्पन्न हुए। सुबह ‘द रिवर इन आर्ट’, उसके बाद ‘रिवर गॉड्स एंड/इन फोक नरेटिव्स’ और दोपहर में ‘साइंस एंड रिवर्स’ विषय पर सत्र आयोजित हुए। पहला सत्र ‘ट्रेडिशनल रिवरिन नॉलेज एंड विज्डम’ (पारंपरिक नदी सम्बंधी ज्ञान और बुद्धिमता) विषय पर था, जबकि दूसरा सत्र ‘रिवर गॉड्स एंड/इन फोक नेरेटिव्स’ (लोककथाएं और नदी देवताओं या लोक कथाओं में नदी देवता) विषय पर था। वहीं, तीसरा सत्र ‘द रिवर इन आर्ट’ (कला में नदी) विषय पर था।

इसके अतिरिक्त, भारतीय सेना के पूर्व सैनिकों ने ‘नदी के संतरी’ सत्र में अपने विचार साझा किए जीवन यात्रा और नदियों से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया। साथ ही, ‘लाइफ अलॉन्ग द रिवर्स : ट्रिब्यूटरीज एंड लाइवलीहुड’ विषय पर एक पैनल चर्चा का आयोजन भी किया गया। तीन दिवसीय नदी उत्सव की अंतिम प्रस्तुति थी ‘बंगाल के नदी गीत’। सौरव मोनी और उनकी टीम ने अपने परफॉरमेंस से श्रोताओं का भावविभोर कर दिया।

नदी उत्सव के अंतर्गत आयोजित नदी विषयक प्रदर्शनियां 30 सितंबर तक जारी रहेंगी। ये प्रदर्शनियां समकालीन कलाकृतियों, कालीघाट पेंटिंग्स, फोटोग्राफी और कविताओं के माध्यम से नदियों की सौंदर्य और चेतना को उद्घाटित करती हैं। छठा नदी उत्सव न केवल एक सांस्कृतिक आयोजन रहा, बल्कि यह नदियों की स्मृति, संरक्षण, और सामाजिक चेतना का माध्यम बना। सृजन, संवाद, और सहभागिता की यह अनूठी यात्रा भारतीय नदियों के महत्व को रेखांकित करने में सफल रही।

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