सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संसद द्वारा पारित अधिनियम को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, जब तक कि विस्तृत सुनवाई कर यह साबित न हो कि यह असंवैधानिक है।
किन प्रावधानों पर रोक लगी
अदालत ने तीन प्रमुख प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाई है। पहला,
1.वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए संबंधित व्यक्ति के पिछले पाँच वर्षों से इस्लाम धर्म का अभ्यास करने की शर्त।
2. वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों के निपटारे का अधिकार ज़िला कलेक्टर को देने का प्रावधान।
3. “वक्फ बाय यूज़र” की परंपरा को हटाने का प्रावधान। अदालत ने कहा कि ये प्रावधान गंभीर संवैधानिक सवाल खड़े करते हैं और फिलहाल इनका लागू होना रोका जाता है।
कौन से प्रावधान लागू रहेंगे
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या तय करने जैसे कई प्रावधान फिलहाल यथावत रहेंगे। साथ ही, राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक नियम बनाएं, विशेषकर शिकायत निवारण से संबंधित हिस्सों के लिए।
अदालत का रुख और कानूनी आधार
अदालत ने अपने आदेश में ‘प्रेजम्पशन ऑफ कंस्टीट्यूशनलिटी’ का हवाला दिया। यानी संसद द्वारा पारित कानून को तब तक संवैधानिक माना जाएगा जब तक कि सुनवाई में यह साबित न हो जाए कि यह संविधान का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा कि विस्तृत सुनवाई के बाद ही अंतिम निर्णय होगा।
राजनीतिक और सामाजिक असर
इस फैसले को लेकर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। आलोचकों का कहना है कि अधिनियम के कुछ प्रावधान अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को सीमित करते हैं। वहीं, समर्थकों का मानना है कि इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। अदालत के इस आदेश के बाद फिलहाल विवादित प्रावधान लागू नहीं होंगे, लेकिन कानून का शेष हिस्सा अमल में रहेगा।
अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट सभी पक्षों की दलीलें सुनेगा और तय करेगा कि अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर अंतिम फैसला क्या होगा। तब तक वक्फ बोर्डों और राज्य सरकारों को मौजूदा आदेशों के अनुसार काम करना होगा।
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