नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना को लागू करने के लिए आवश्यक दो विधेयकों को मंजूरी दे दी है। ये बिल लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की योजना का हिस्सा हैं, और भविष्य में स्थानीय चुनावों को भी इनमें शामिल करने का प्रस्ताव है। इन विधेयकों को संविधान के कुछ प्रावधानों में बदलाव करने के लिए पेश किया जाएगा। इन विधेयकों को आगामी शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किए जाने की संभावना है।
कैबिनेट बैठक में मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इन विधेयकों को मंजूरी दी गई। इनमें एक संशोधन 82वें अनुच्छेद से संबंधित है, जो लोकसभा सीटों के राज्यवार आवंटन और राष्ट्रीय जनगणना के बाद राज्यों को चुनावी क्षेत्रों में विभाजित करने के संबंध में है। दूसरा संशोधन लोकसभा और राज्य विधानसभा के कार्यकाल और उनके भंग होने के प्रावधानों में बदलाव करेगा।
दूसरे बिल में लोकसभा और राज्य विधानसभा के कार्यकाल को जोड़ने का प्रावधान होगा, जबकि तीन संघ शासित प्रदेशों—पुडुचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर—की विधानसभा को राज्यों की विधानसभा और लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए कानूनों में भी संशोधन किया जाएगा। हालांकि, इन संशोधनों के लिए राज्यों की 50 प्रतिशत से अधिक सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन यदि स्थानीय निकाय चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के साथ जोड़ने की बात की जाती है, तो इसे राज्यों की कम से कम आधी संख्या से स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।
विपक्ष ने किया विरोध
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव पर विपक्ष ने तीखा विरोध जताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे “विरोधी संघीय” बताया और इसे “तानाशाही कदम” करार दिया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसे “लोकतंत्र के खिलाफ” बताया। कांग्रेस, शिवसेना और आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी इस कदम का विरोध किया है। इन नेताओं का कहना है कि यह कदम भारतीय लोकतंत्र और संघीय ढांचे के लिए खतरनाक हो सकता है।
कोविंद पैनल की रिपोर्ट
इससे पहले, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की योजना पर काम करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक पैनल गठित किया गया था। कोविंद पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह कदम देश के लिए फायदेमंद होगा और इससे भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव आ सकते हैं। पैनल के मुताबिक, एक साथ चुनावों के आयोजन से संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और सरकारों को स्थिरता मिलेगी। पैनल ने यह भी कहा था कि इससे जीडीपी में 1 से 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर जनमत संग्रह के दौरान पैनल को लगभग 21,000 सुझाव मिले थे, जिनमें से 81 प्रतिशत से अधिक लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में थे।
भविष्य में चुनौतियाँ
हालांकि, इस योजना को लागू करने में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं, जिनमें राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाना और चुनावी चक्र को समायोजित करना शामिल है। इसके अलावा, अगर लोकसभा और विधानसभा भंग हो जाते हैं, तो इस स्थिति को कैसे संभालेंगे, यह भी स्पष्ट नहीं है। क्षेत्रीय दलों ने इस योजना के खिलाफ अपनी चिंताएँ व्यक्त की हैं, जिनका कहना है कि उनके पास संसाधन सीमित हैं और वे स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने में सक्षम नहीं होंगे।
इसके अलावा, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) की खरीद पर आने वाला खर्च भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। चुनाव आयोग ने इस पर लगभग 10,000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया है, जो हर 15 साल में किया जाएगा।
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