किताब का हिसाब: पढ़ें प्रेम रंजन अनिमेष का उपन्यास स्त्रीगाथा

स्त्रीगाथा हिंदी के चर्चित कवि, कथा लेखक प्रेम रंजन अनिमेष का पहला उपन्यास है. समकालीन हिंदी पत्र पत्रिकाओं में प्रायः उपस्थित रहने वाले प्रेम का स्थान बन चुका है. रोचक बात यह है कि ऊन्होने अपने पहले उपन्यास में भी एक रोचक प्रयोग किया है जिसका अंदाज आपको दो तिहाई उपन्यास पढ़ने के बाद चलता है.

स्त्रीगाथा के आवरण का अंश
Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: January 23, 2025 10:34 am

बात यह है कि ऊन्होने अपने पहले उपन्यास स्त्रीगाथा में भी एक रोचक प्रयोग किया है जिसका अंदाज आपको दो तिहाई उपन्यास पढ़ने के बाद चलता है. उपन्यास दो खंडों में बंटा है. पहला खंड निम्न मध्य वर्ग की ऐसी स्त्री की कथा है जिसे उसकी उच्च शिक्षा की बात छुपा कर एक सामान्य व्यवसायी परिवार में व्याह दिया जाता है. यहां वह किसी की पत्नी, किसी की बहू, किसी की माँ बनकर आधी ज़िंदगी बिता देती है .फिर एक दिन महिलाओं का एक ग्रुप उनके घर आता है और उस ग्रुप की सदस्य बनाने के लिए उनका नाम पूछता है

बहुत प्रयास के बाद भी उसे अपना नाम याद नहीं आता. कुछ विचित्र लगता है. यहीं से एक काव्यात्मक उड़ान शुरू होती है उस महिला की जबवह अपना नाम-अपना अस्तित्व ढूंढने निकलती है. इस तलाश में वह अपने पुराने शहर, कॉलेज ,मुहल्ले और पड़ोसियों से मिलती है.उसकी मुलाकात होती है अपने एक साहित्य के प्राध्यापक से जिन्होंने अपने पालतू पशुओं और पौधों का भी नामकरण किया है पर उन्हें भी इस स्त्री का नाम याद नहीं. वह अपनी पुरानी छात्रा को पहचानते तो हैं पर नाम याद नहीं है. इस भाग में लेखक की सुंदर भाषा, उसका प्रवाह और एक विचित्र सा कौतुक आकर्षित करता है. बहुत बड़ा कटाक्ष भी छिपा है महिलाओं के संबंध में भारतीय मध्य वर्ग के सोच को लेकर. वह महिला अपने गाँव भी जाती है इस उम्मीद में कि उसकी माँ के मृत्यु के बाद प्रायः उसके बक्से में उसका छिपाया हुआ प्रमाण पत्र या कुछ मिल जाय!यहाँ भी उसे निराशा ही हाथ लगती है. उसके दबंग चाचा को संपत्ति में बंटवारे का खतरा दीखने लगता है. वह आशंकित होकर सबेरे चाचा की अनुपस्थिति में ही वापस लौटने लगती है .चलते चलते जब अपनी चाची से भी नाम पूछती है तो आंसुओं से उसे पता चलता है कि उसे भी अपना नाम याद नहीं. बड़ा रोचक है कि इस पूरे खंड में किसी महिला का कोई नाम नहीं है :बड़ी अम्मा, पडोसिने, सखी, ग्रुप की महिलाएं किसी के लिए नाम का प्रयोग नहीं किया गया है.

स्त्रीगाथा उपन्यास का दूसरा भाग बहुत अलग अंदाज में आगे बढ़ता है.सारे लोगों के नाम हैं और एक चित्रात्मकता के संग्र कस्बे की तस्वीर प्रस्तुत करता है. भाषा रोज इस्तेमाल की जाने वाली भाषा है ,एक त्वरित प्रवाह है कथा में.कस्बे का एक छोटा सा पत्रकार अपने एक मित्र के संपर्क से( उम्मीद की किरण के सहारे) चकाचौंध की दुनियाँ मुम्बई पहुँच जाता है .उसका दोस्त सीरियल लिखता है… व्यस्त रहता है. दोस्त उसे कुछ छोटे फिल्मकारों से मिलवाता है और फिर दिखाई देता है उस फिल्मी दुनिया के तिलिस्म का फरेब जिसमे झूठ, फरेब, वायदाखिलाफी, शारीरिक शोषण, योग्यता का शोषण और मखौल सब है. एक सम्पूर्ण छद्म की दुनिया है और सभी सबों के शोषण के लिए लिए निरंतर अवसर की तलाश में है !

बहुत बाद में पता चलता है कि उपन्यास का पहला भाग उस पत्रकार की कहानी है जिस पर फ़िल्म बनाने की प्रक्रिया चल रही है. उपन्यास के के दूसरे भाग में बहुत सारी गतिविधियां होती हैं, बहुत सारे पात्र हैं, मानो कैमरे से दृश्यों को जीवंत ध्वन्यनकित कर चला दिया गया हो. भाषाई स्तर पर भी प्रथम हिस्सा अधिक चुस्त है,पर यह भी एक अनूठा प्रयोग मान सकते हैं. लेखक ने अनेक अध्याय के अंत में अपने ग़ज़लों का भी उपयोग किया है. कई स्थान पर तो वह सार्थक लगता है पर अन्य कई जगहों पर वह एक सायास थोपा गया सा लगता है.

स्त्रीगाथा में लेखक ने अलग अलग ढंग से स्त्री के अस्तित्व, औचित्य और शोषण का दृश्य प्रस्तुत किया है.कुछेक विचित्र प्रसंग हैं जहाँ स्त्री अपने यौनिक स्वतंत्रता को मुक्ति मानकर शोषण के व्यूह में उलझती चली जाती है. छपाई सुंदर है.उपन्यास बहुत रोचक, पठनीय और संग्रहणीय भी है.

उपन्यास: स्त्रीगाथा, पृष्ठ:314

प्रकाशक: सेतु प्रकाशन

प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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One thought on “किताब का हिसाब: पढ़ें प्रेम रंजन अनिमेष का उपन्यास स्त्रीगाथा

  1. बेहतरीन तरह से आपने बताया … करीब एक दशक पहले तक जाने अंजाने में सह हर मध़्यमवर्गी महिला की बात थी।शायद आज भी हो़…उत्सुकता बढ़ाती समीक्षा

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