किताब का हिसाब : पढ़ें, संस्मरणों का संग्रह ‘अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ’ 

भारत के स्वतंत्रता की लड़ाई में सिर्फ उन लोगों का योगदान नहीं है जिन्हें समय समय पर सत्ताधीशों द्वारा पाठ्यक्रमों में स्थान दिया गया . न ही मात्र उनलोगों का द्वारा जो सत्ता में अलग अलग रूप में भागीदार बन गए. उन लाखों लोगों के बलिदान की कहीं भी कोई चर्चा नहीं होती, न ही उन्हें इतिहास के पन्नों में कोई सम्मानजनक स्थान ही मिला जबकि उनलोगों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा था जिसके कारण देश को स्वतंत्र होने की परिस्थिति बनी!

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: February 23, 2025 11:03 pm

आज की चर्चा में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसे पढ़ा जाना नई शताब्दी के लोगों के लिए अति आवश्यक है. पुस्तक का नाम है'”अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ” .यह पुस्तक बहुत सारे लेखों का, संस्मरणों का संकलन है. इसे संपादित किया है प्रसिद्ध पत्रकार लेखक बनारसी प्रसाद चतुर्वेदी ने.

कुछ वर्षों में ही इसके द्वितीय संस्करण आने मात्र से इस पुस्तक में लोगों की रुचि का अनुमान लगाया जा सकता है . पुस्तक की भूमिका लिखी है चर्चित विद्वान बाबा पृथ्वी सिंह ‘आज़ाद’. भूमिका के प्रारंभ में ही पृथ्वी सिंह जी लिखते हैं : – “कविवर स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी की एक कविता है – *मुझे तोड़ लेना वनमाली ,उस पथ पर पर देना तुम फेंक।/ मातृभूमि पर शीश चढ़ाने ,जिस पथ जाएं वीर अनेक* निस्संदेह शहीदों ने स्वदेश की आन-बान को अपना बलिदान देकर,,देश की रक्षा के लिए, शान के साथ अपने को कुर्बान किया था, उसे देखकर सैकड़ों नवयुवक प्रभावित हुए थे, परंतु उनके पद चिह्नों पर चलने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त नहीं हो सका।”

बाबा पृथ्वी आगे लिखते हैं”………अशफाक उल्ला ख़ाँ और रामप्रसाद बिस्मिल अपने देश के आशिक थे और इश्क में चूर होकर वे एक-दूसरे में लवलीन हो गए थे।वे मानवता से उठकर देवताओं की तरह उड़ रहे थे।हमने दोनों के आदर्श जीवन से केवल एक ही पाठ सीखा है वह यह कि हिन्दू और मुसलमान एक जान दो कालिब किस प्रकार बन जाते हैं।

मनुष्यता के डगर पर चलनेवाले और बंधुत्व की पूजा करनेवाले दो मानव आपस में मिलकर किस तरह ज़िंदा रह सकते हैं और किस तरह मर सकते हैं।” पुस्तक में अलग अलग ग्यारह लेख हैं, जेल से अशफाक उल्लाह ख़ाँ के लिखे सात पत्र हैं ,दो रचनाएं हैं,दो संदेश हैं और अलग अलग लोगों के द्वारा लिखे सात संस्मरण हैं. इस पुस्तक को पढ़कर हमारे देश में बहुत सारे मोर्चों पर चल रहे संघर्ष की झलक मिलती है .यह भी पता चलता है कि किसी देश भक्त आंदोलनकर्ता के योगदान को कम नहीं आंका जाना चाहिए . भगत सिंह लिखित उनकी ‘जेल डायरी ‘की तरह इस पुस्तक को भी पढ़ा जाना चाहिए! पुस्तक पठनीय एवं आवश्यक रूप से संग्रहणीय है.

पुस्तक:अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ

संपादक: बनारसीदास चतुर्वेदी

प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक , पृष्ठ:172, मूल्य:रु.250.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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