योग और बौद्ध परंपरा में समाधि को आत्मज्ञान, मोक्ष और ब्रह्मानंद प्राप्त करने का द्वार माना गया है। यह वह स्थिति है, जहाँ साधक सांसारिक बंधनों से परे जाकर अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव करता है।
समाधि की अवस्थाएँ
सविकल्प समाधि (संप्रज्ञात)
इस अवस्था में साधक का मन किसी एक विचार, मंत्र, प्रकाश या ध्येय पर केंद्रित रहता है। हालांकि, इसमें अब भी सूक्ष्म विचार बने रहते हैं। यह चार स्तरों में विभाजित है—
1. वितर्कानुगत – स्थूल वस्तुओं पर ध्यान।
2. विचारानुगत – सूक्ष्म विचारों पर ध्यान।
3. आनंदानुगत – ध्यान में आनंद का अनुभव।
4. अस्मितानुगत – केवल “मैं” की अनुभूति शेष रहती है।
(2) निर्विकल्प समाधि (असंप्रज्ञात )
इस अवस्था में साधक के मन में कोई भी विचार नहीं रह जाता। यह परम शून्यता और आत्मज्ञान की स्थिति होती है, जहाँ साधक अपने अहंकार, विचारों और विकारों से पूर्णतः मुक्त हो जाता है।
3. ध्यान और समाधि का अंतर
ध्यान में मन किसी एक वस्तु, विचार या मंत्र पर केंद्रित रहता है।
🙏समाधि में मन उस वस्तु के साथ एकरूप होकर अपनी स्वतंत्र सत्ता को खो देता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई साधक दीपक की लौ पर ध्यान करता है, तो ध्यान की अवस्था में वह लौ को देख रहा होता है। लेकिन समाधि की अवस्था में, वह स्वयं उस लौ के साथ एक हो जाता है।
4. समाधि प्राप्त करने का मार्ग
(1) मानसिक और भावनात्मक शुद्धता
जब तक मन में लोभ, क्रोध, मोह, अहंकार और इच्छाएँ बनी रहेंगी, तब तक समाधि की अवस्था में पहुँचना कठिन होगा। ध्यान और सत्संग के माध्यम से इन विकारों का नाश करना आवश्यक है।
(2) ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास
नियमित ध्यान और प्राणायाम करने से मन शांत और नियंत्रित होता है।
श्वास पर ध्यान केंद्रित करने से एकाग्रता विकसित होती है।
जब मन पूर्ण रूप से स्थिर हो जाता है, तो वह समाधि की ओर अग्रसर होता है।
(3) इंद्रियों का संयम
इसके लिए आवश्यक है कि साधक अपनी इंद्रियों को संयमित करे। इच्छाएँ और वासनाएँ मन को विचलित करती हैं और ध्यान में बाधा उत्पन्न करती हैं।
(4) सतत आत्मचिंतन और वैराग्य
जब तक मन संसार की वस्तुओं में आसक्त रहेगा, तब तक समाधि की अवस्था प्राप्त करना कठिन होगा। वैराग्य (संसार की नश्वरता का बोध) मन को इसकी ओर ले जाता है।
5. समाधि के लक्षण
1. पूर्ण मानसिक शांति – मन में कोई द्वंद्व, संशय या विकार नहीं रहता।
2. इंद्रियों का विलय – शरीर की भूख, प्यास और सुख-दुख का अनुभव समाप्त हो जाता है।
3. समय और स्थान का बोध समाप्त – साधक को समय, दिशा और स्थान का ज्ञान नहीं रहता।
4. निर्विकल्प आनंद – यह अवस्था अनिर्वचनीय आनंद, शांति और आत्मसाक्षात्कार की होती है।
उदाहरण के लिए, संत रामकृष्ण परमहंस ध्यान करते समय ऐसी गहरी अवस्था में लीन हो जाते थे कि उन्हें अपने शरीर की सुधि नहीं रहती थी। उनकी यह स्थिति कई घंटों तक बनी रहती थी।
6. बौद्ध धर्म और समाधि
बौद्ध धर्म में इसे आत्मज्ञान की ओर ले जाने वाला मार्ग माना गया है। यह अष्टांगिक मार्ग (Noble Eightfold Path) का अंतिम चरण है।
गौतम बुद्ध के अनुसार, ये तब प्राप्त होती है जब मन पूरी तरह से शांत और स्पष्ट हो जाता है। यह पाँच आध्यात्मिक शक्तियों (श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि, प्रज्ञा) में से एक है।
7. पतंजलि योगसूत्र में समाधि
महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में इसे अष्टांग योग का अंतिम चरण बताया है।
उनके अनुसार, समाधि के महत्वपूर्ण सूत्र
1. “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” (योगसूत्र 1.2)
> योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (रोकना) है। जब चित्त शांत हो जाता है, तभी यह संभव होती है।
2. “तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्” (योगसूत्र 1.3)
> जब चित्त वृत्तियाँ शांत हो जाती हैं, तब साधक अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा) में स्थित हो जाता है।
3. “सतत अभ्यास और वैराग्य से ये प्राप्त होती है।” (योगसूत्र 1.12)
> अभ्यास और वैराग्य के बिना ये अवस्था प्राप्त करना कठिन है।
8. समाधि के लाभ
1. मानसिक शांति और संतुलन – समाधि से मन में पूर्ण शांति और पवित्रता आती है।
2. अद्वैत अनुभव – साधक अपने अहंकार से मुक्त होकर “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” (सब कुछ ब्रह्म ही है) का अनुभव करता है।
3. चित्त की पूर्ण शुद्धि – लोभ, क्रोध, मोह और अहंकार समाप्त हो जाते हैं।
4. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य –इससे मस्तिष्क शांत रहता है, जिससे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
9. समाधि और निर्वाण
इसकी अंतिम अवस्था को निर्वाण कहा जाता है, जहाँ साधक जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
गौतम बुद्ध ने कहा—
“समाधि से ही निर्वाण की प्राप्ति होती है, क्योंकि जब मन पूर्णतः शांत और केंद्रित हो जाता है, तभी वह समस्त मोह-माया से मुक्त होकर सत्य को जान सकता है।”
10. निष्कर्ष
समाधि आत्मज्ञान और मोक्ष की परम अवस्था है। यह केवल ध्यान की एक स्थिति नहीं, बल्कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। पतंजलि योगसूत्र और बौद्ध दर्शन के अनुसार, इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए सतत अभ्यास, वैराग्य और आत्मचिंतन आवश्यक हैं।
जो व्यक्ति समाधि प्राप्त कर लेता है, वह सांसारिक दुखों से मुक्त होकर परम आनंद और शांति की अवस्था में स्थित हो जाता है। यह आत्मा का ब्रह्म के साथ मिलन है—परम सत्य, परमानंद और शाश्वत मुक्ति की अनुभूति।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक एवं आध्यात्मिक गुरु हैं।)
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