अध्यात्म : मोह से बचना बहुत जरूरी है

मोह एक ऐसा मानसिक बंधन है जो व्यक्ति को सत्य से दूर कर देता है और उसे सांसारिक भटकाव में उलझाए रखता है। यह व्यक्ति को अस्थायी सुख-सुविधाओं, रिश्तों और वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आसक्त कर देता है, जिससे दुख, चिंता और भय उत्पन्न होते हैं।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: April 1, 2025 11:57 pm

रामायण में कई चौपाइयाँ मोह (अज्ञानजनित आसक्ति) के विषय में मिलती हैं। यह चौपाई मोह के प्रभाव और उसके निवारण को दर्शाती है:

1. मोह के प्रभाव पर:
“मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला।”
“तेहि ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥”

(अर्थ: ये सभी रोगों की जड़ है, और इससे अनेक प्रकार के कष्ट उत्पन्न होते हैं।)

2. इसके निवारण पर:
“जौं रघुपति कृपा करिहीं तोरें।”
“तब तव मोह दूरि होइ मोरें॥”

(अर्थ: यदि श्रीराम कृपा करेंगे, तो तुम्हारा मोह अवश्य नष्ट हो जायेगा।

महाभारत में मोह:

(अज्ञानजनित आसक्ति) एक केंद्रीय विषय है, जो कई पात्रों के पतन और संघर्ष का कारण बनता है। यह न केवल सांसारिक बंधनों के रूप में प्रकट होता है, बल्कि यह धर्म और अधर्म के बीच के अंतर को न समझ पाने का कारण भी बनता है।

महाभारत में इसके विभिन्न रूप:

1. धृतराष्ट्र का पुत्रमोह:

धृतराष्ट्र अपने पुत्रों, विशेषकर दुर्योधन के प्रति अत्यधिक आसक्त थे। यह उन्हें न्यायपूर्ण निर्णय लेने से रोकता रहा, जिससे अंततः कौरवों का विनाश हुआ।

2. अर्जुन का मोह (गीता का प्रारंभिक संदर्भ):

कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन अपने संबंधियों को देखकर मोहग्रस्त हो गए। उन्होंने युद्ध से पीछे हटने की इच्छा जताई, यह कहते हुए कि अपने ही स्वजनों को मारना अधर्म है।

श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवद गीता के माध्यम से सिखाया कि यह केवल माया है और सच्चा कर्तव्य निष्काम कर्म में है।

3. कर्ण का मोह (मित्रता और दानवीरता का ):

कर्ण दुर्योधन का ऋणी था और उसकी मित्रता के मोह में फंसकर अधर्म के पक्ष में खड़ा रहा।

उसे जब अपनी वास्तविक पहचान (कुंती का पुत्र होने की) पता चली, तब भी वह अपने दायित्वों से विमुख नहीं हो सका और अंततः अपने धर्म के विपरीत जाकर कौरवों का साथ दिया।

4. युधिष्ठिर का जुए का मोह:

धर्मराज युधिष्ठिर भी इसके वश में जुए में पड़ गए, जिसके कारण उन्होंने अपना राज्य, धन, भाई और पत्नी तक को दांव पर लगा दिया।

5. द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा :

द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के प्रति अत्यधिक मोह रखते थे, जिसके कारण उन्होंने अधर्म का साथ दिया और अंततः छल से उनका वध किया गया।

अश्वत्थामा भी अपने पिता की मृत्यु के प्रतिशोध के लिए में धृतराष्ट्र की संतान हत्या कर बैठा, जिससे वह शापित हो गया।

महाभारत का संदेश:

महाभारत यह सिखाता है कि मोह आत्म-विकास और सत्य की राह में सबसे बड़ा अवरोधक है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण समझाते हैं कि जब मनुष्य मोह को त्यागकर अपने कर्तव्य का पालन करता है, तभी वह सच्ची मुक्ति प्राप्त करता है।

आधुनिक जीवन में :

माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति अंधा मोह उन्हें सही निर्णय लेने से रोक सकता है।

सांसारिक भोग-विलास और इच्छाओं का मोह व्यक्ति को आत्म-विकास से दूर रख सकता है।

रिश्तों, संपत्ति और प्रतिष्ठा का मोह जीवन में अनावश्यक संघर्ष और दुख का कारण बन सकता है।

इसलिए, महाभारत से हमें यह सीख मिलती है कि इसे त्यागकर धर्म और कर्तव्य के मार्ग पर चलना ही जीवन का परम उद्देश्य है।

इससे बचने के मुख्य कारण:

1. सच्चे सुख की प्राप्ति – मोह से मुक्त होने पर व्यक्ति स्थायी शांति और आनंद का अनुभव कर सकता है, जो बाहरी चीज़ों पर निर्भर नहीं होता।

2. मानसिक संतुलन – इसके कारण व्यक्ति क्रोध, ईर्ष्या और असुरक्षा का शिकार हो सकता है। इससे बचने पर मानसिक शांति बनी रहती है।

3. निर्भरता से स्वतंत्रता – ये व्यक्ति को बाहरी चीज़ों पर निर्भर बना देता है, जबकि सच्ची स्वतंत्रता भीतर से आती है।

4. दुख से मुक्ति – जब हम किसी चीज़ या व्यक्ति के प्रति मोह रखते हैं और वह हमारे अनुसार नहीं होता, तो हमें पीड़ा होती है। इससे बचकर हम इस पीड़ा से मुक्त हो सकते हैं।

5. सत्य और विवेक की पहचान – मोह व्यक्ति को भ्रम में रखता है, जिससे सही और गलत में भेद कर पाना कठिन हो जाता है। जब मोह कम होता है, तो विवेक और समझ बढ़ती है।

कैसे बचें ?

ध्यान और आत्म-जागरूकता द्वारा मन को नियंत्रित करें।

अनित्य (impermanence) के सिद्धांत को समझें—सब कुछ नश्वर है, इसलिए किसी चीज़ से अत्यधिक आसक्ति व्यर्थ है।

सेवा और परोपकार का अभ्यास करें, जिससे स्वयं का अहंकार और व्यक्तिगत इच्छाएँ कम हों।

संतोष और सरलता को अपनाएँ, जिससे भौतिक चीज़ों की लालसा कम होगी।

इससे मुक्त होकर हम अपने भीतर स्थायी शांति और सच्चे आनंद की अनुभूति कर सकते हैं।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकर हैं।)

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