तमिलनाडु विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: राज्यपाल की भूमिका पर कड़ा रुख

तमिलनाडु सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को रोकने को गैरकानूनी ठहराया है।

Written By : MD TANZEEM EQBAL | Updated on: April 8, 2025 6:30 pm

नई दिल्ली/चेन्नई:तमिलनाडु की एम.के. स्टालिन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 महत्वपूर्ण विधेयकों को रोकने के फैसले को “गैरकानूनी” और “मनमाना” करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को विधानसभा द्वारा दोबारा पारित किए गए बिलों को मंजूरी देनी चाहिए थी।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में कहा, “राज्यपाल द्वारा इन 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजना अवैध और मनमाना था। इसलिए इसे रद्द किया जाता है। ये सभी विधेयक उस दिन से स्वीकृत माने जाएंगे, जब इन्हें दोबारा राज्यपाल के पास भेजा गया था।”

मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस फैसले को “ऐतिहासिक” बताते हुए कहा कि यह न केवल तमिलनाडु बल्कि भारत के सभी राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है। स्टालिन ने कहा, “डीएमके राज्य के अधिकारों और संघीय ढांचे की रक्षा के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगी।”

क्या कहता है संविधान?

अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल किसी भी विधेयक को तीन विकल्पों के तहत देख सकता है—स्वीकृति देना, अस्वीकृति देना या उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना। लेकिन अगर कोई बिल विधानसभा द्वारा पुनः पारित किया गया है, तो राज्यपाल उसे अस्वीकार नहीं कर सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने अब इन प्रक्रियाओं पर समयसीमा तय करते हुए कहा कि अगर राज्यपाल किसी बिल पर विचार नहीं करता है, तो उसकी कार्रवाई न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकती है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल की हर कार्रवाई संसदीय लोकतंत्र की भावना के अनुरूप होनी चाहिए।

राज्यपाल और सरकार के बीच लंबे समय से तनातनी

पूर्व आईपीएस अधिकारी और सीबीआई में कार्य कर चुके आर.एन. रवि 2021 में तमिलनाडु के राज्यपाल बने थे। उनके कार्यकाल के दौरान डीएमके सरकार से उनके रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं। राज्य सरकार ने उन पर आरोप लगाया है कि वह केंद्र सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं और राज्य के विधेयकों तथा नियुक्तियों को जानबूझकर रोकते हैं।

पिछले साल राज्यपाल ने विधानसभा के उद्घाटन भाषण में शामिल होने से इनकार कर दिया था और उसके मसौदे को “भ्रामक और असत्य” बताया था। उससे पहले उन्होंने उस हिस्से को पढ़ने से भी इनकार कर दिया था जिसमें बी.आर. अंबेडकर, पेरियार और “द्रविड़ मॉडल” जैसे शब्दों का उल्लेख था।

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और न्यायिक दखल

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी राज्यपाल रवि की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने पूछा था कि जब ये विधेयक 2020 से लंबित हैं तो राज्यपाल तीन साल तक क्या कर रहे थे? कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्यपाल को संविधान और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करना ही होगा।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

डीएमके ने राज्यपाल के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा है कि यह पद की गरिमा की रक्षा के लिए जरूरी है। यह फैसला उस समय आया है जब राज्य और केंद्र के बीच कई मुद्दों को लेकर विवाद गहराया हुआ है—जैसे एनईईटी से छूट, हिंदी थोपने का मुद्दा और परिसीमन पर मतभेद।

इस ऐतिहासिक फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि निर्वाचित सरकार की संप्रभुता और राज्य के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। साथ ही यह अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकता है, जहां राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव की स्थिति है।

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