सुप्रीम कोर्ट पर भड़के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, क्यों कही मिसाइल की बात ?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के सुप्रीम कोर्ट पर दिए बयान से कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव बढ़ने के आसार हैं. सुप्रीम कोर्ट को सीधे निशाने पर लेते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दें सकती हैं. संविधान का अनुच्छेद 142 कार्यपालिका के लिए न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है.

Written By : संतोष कुमार | Updated on: April 17, 2025 10:10 pm

राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं अदालतें: धनखड़
दिल्ली में राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें. जगदीप धनखड़ का यह बयान राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद आया है.

अनुच्छेद 142 लोकतंत्र के खिलाफ मिसाइल: धनखड़
संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो. सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लोकतंत्र के खिलाफ परमाणु मिसाइल बताया है.

सुपर संसद का काम नहीं कर सकते जज 
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लिये जाने के वास्ते समयसीमा निर्धारित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक ‘सुपर संसद’ के रूप में काम करेंगे.

राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया: धनखड़
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यहां कहा कि हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है. राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है. यदि ऐसा नहीं होता है, तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है. उन्होंने कहा कि हम कहां जा रहे हैं ? देश में क्या हो रहा है ? हमें बेहद संवेदनशील होना होगा. यह कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है. हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र को नहीं अपनाया था. उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर ? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है. इसके लिए पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है.

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