पंकज त्रिवेदी के कविता संग्रह ‘तुम मेरे अज़ीज़ हो‘ में छोटी-छोटी 199 कविताएं हैं. 146 पृष्ठ के इस कविता संग्रह में विभिन्न प्रकार की कविताएँ हैं. कवि की दृष्टि व्यापक होती है और इस संसार में किसी भी मूर्त और अमूर्त विषय पर वह अपनी कविता लिख सकता है.
पंकज त्रिवेदी जी की कुछ कविताओं के शीर्षक देखिये तो अनुमान हो जाएगा कि इनकी नज़र कहाँ- कहाँ जाती है : खुशहाल, अलमीरा और माँ, नीम, चुप्पी, प्रश्न, जिजीविषा, गिल्ली डंडा, अलोचना, कैनवास, चाहत, अकेला सा, रिश्ता, गंगाजल बहे, खामोशी, ख्वाब, मन, बची है दोस्त, वृक्ष, दियासलाई, बचपन,ज़ख्म, खबर, मत्स्यकन्या, स्मृति, झील और मैं इत्यादि.
संग्रह के आमुख में प्रसिद्ध लेखिका प्रियंबदा पांडेय लिखती हैं : ” गुजराती साहित्यकार पंकज त्रिवेदी जहाँ गद्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं,वहीं वह कविता में भी अपनी ज़बरदस्त पकड़ के लिए जाने जाते हैं।….कविता का कलेवर बदला है, तेवर नहीं। …आपकी कविता का सबसे बड़ा आकर्षण कविता का सरल और सतत प्रवाह है। सरल शब्दों में गंभीर भावभूमि आपकी अलग छवि का निर्धारण करती है।” कुछ कविता की पंक्तियों को देखिये:
“कोई भी/सुने नहीं, बोले न/ नहीं गले लगाए। /तब खामोशी/ गले लगा लेती है।/चुप रहकर भी /बहुत बेबाक हो गया हूँ मैं !/और अब तुम्हारे/ निरंतर सवाल कि बोल्ते क्यूँ नहीं?/अब तुम्हें क्या बोलूँ मैं?” ( जब कहीं ,पृष्ठ 1) एक और कविता देखिये : “इस नीम के/ हरे ताज़े पत्तों -सी तुम/आज भी हरियाली हो।/इनके फूलों को जब ?खाते थे, तब उत्साह की मिठास कड़वाहट मिटाती थी।/ माँ औषधि के रूप में/ इन पत्तों को गर्म पानी में /उबालकर नहलाती थी।/ एक तुम हो कि /आज मेरी याददाश्त को/ बचपन की गलियों में उंगली पकड़कर ले गई।/जैसे मेरी माँ नीमकर फूल/ न खाने पर पीटती थी,मुझे/ और प्यार से नहलाती थी।”(नीम,पृष्ठ-8)
एक अलग तरह की कविता देखिये पंकज जी की : “मेरे किले में / बहुत लोग आते-जाते हैं /कोई आश्चर्य लेकर /कोई सुख और प्यार लिए /कोई खरी खरी सुनाकर जाए /कोई अपनी संवेदना जताए/ मगर अब/ किले की बूढ़ी दीवारों से/कंकड़ और पत्थर/अपने स्थान को छोड़ रहे हैं/ उनके स्थानांतरण से दुःख नहीं/ नियति का यही तो नियम है /ध्वंस और निर्माण!” (मेरे किले में,पृष्ठ 43) पंकज जी की भावनाएं सूक्ष्म और स्थूल सभी चीजों को महसूस करती हैं.
इन पंक्तियों को देखिये : “माँ के लिए क्या लिखूँ?/ माँ तुम्हारी साँस को/ आज भी मैं परख लेता हूँ।/ क्योंकि गौर से मैंने सुनी थी /जब तुम्हारे पेट में था और/आज मैं हूँ -इस दुनिया में…” (मातृदिवस, पृष्ठ -122) पंकज जी ने अनायास ही क्षेत्रीय भावनाओं, भावों और किंवदंतियों का इशारा भी अपनी कविता में किया है. पाठक शायद कहीं कहीं महसूस करें कि कविताओं को झटके में समेट लिया गया है ,कुछ कविताएं विस्तार की संभावना लिए है. पंकज त्रिवेदी के पास विपुल शब्द भंडार और समृद्ध भाषा है. पुस्तक की छपाई सुंदर है. पुस्तक संग्रहणीय और पठनीय है.
पुस्तक : तुम मेरे अज़ीज़ हो
प्रकाशक: विश्वगाथा,गुजरात
कवि: पंकज त्रिवेदी , पृष्ठ- 146 मूल्य: रु 200

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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संतुलित और बिना लागलपेट खरी खरी समीक्षा ने मन मोह लिया।
कविताओं के विषय वैविध्य, भाषा और सरलता में आपने सशक्त लिखा।
आपका हृदय तल से आभारी हूं।
पंकज त्रिवेदी
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
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बहुत ही सुंदर समीक्षा। समीक्षक और रचनाकार दोनों को बधाई।
बहुत ही गहरा विश्लेषण
प्रमोद जी व कवि को बधाई