वैदिक इतिहास में बहुत ऊँचा स्थान है ऋषि अत्रि का

सनातन धर्म के वैदिक इतिहास में ऋषि अत्रि का स्थान अत्यंत उच्च है। वे सप्तऋषियों में एक थे और वेदों में वर्णित अनेक ज्ञानों के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनका जीवन तपस्या, ज्ञान, भक्ति और परिवारिक मर्यादा का आदर्श उदाहरण है। ऋषि अत्रि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। माता अनुसूया ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बच्चों में बदल दिया था।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: July 1, 2025 11:02 pm

ऋषि अत्रि को ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी कठोर तपस्या से वेदों की गूढ़ विद्याओं का अर्जन किया और ऋग्वेद के पंचम मण्डल (अत्रि मंडल) में कई सूक्तों की रचना की। ऋषि अत्रि ( Rishi Atri) ने अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि देवताओं की स्तुतियों के अनेक मंत्रों की रचना की। वे त्रिकालदर्शी” माने जाते हैं — अर्थात जो भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते थे। “आत्रि संहिता “नामक ग्रंथ भी उनके नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें ज्योतिष, आयुर्वेद और धर्मशास्त्र का ज्ञान निहित है।

तप में तेज, विचार में गम्भीर अत्रि ऋषिवर जान।
वेद-मंत्र के मूल में, उनका ही है ज्ञान।।

अनुसूया और दिव्य सन्तानें:

ऋषि अत्रि ( Rishi Atri) की पत्नी थी देवी अनुसूया, जो पतिव्रता की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। उनकी तपस्या और श्रद्धा से प्रसन्न होकर स्वयं त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) उनके पुत्र रूप में जन्मे।

ऋषि के तीन महान पुत्र:

1. दत्तात्रेय – विष्णु अवतार, योग और ज्ञान के प्रतीक।

2. चंद्रमा – ब्रह्मा स्वरूप, जिन्हें ऋषि अत्रि ने अपनी दृष्टि से उत्पन्न किया।

3. महर्षि दुर्वासा – शिव अवतार, जिनका क्रोध भी धर्म के हित में होता था।

दोहा:

अनुसूया की सुत बने, त्रिदेवों के नाथ।
अत्रि कुल में जन्म ले, बढ़ी धर्म की बात।।

तपस्या की शक्ति और पौराणिक कथाएँ:

Sake कथा अनुसार, ऋषि अत्रि की तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिदेव स्वयं दर्शन देने आए। रामायण में वर्णित है कि श्रीराम, लक्ष्मण और सीता उनके आश्रम में गए थे और अनुसूया माता ने सीताजी को धर्म का उपदेश प्राप्त किया।

दोहा:

राम मिलन अत्रि से हुआ, धर्म गूढ़ वह जान।
अनुसूया ने सीता को, दी सतीत्व की शान।।

सूर्य ग्रहण संबंधी ज्ञान सबसे पहले अत्रि ऋषि को हुआ था।

धर्म, विज्ञान , कृषि और समाज में योगदान:

उन्होंने त्रिसूत्री यज्ञोपवीत (जनेऊ) की परंपरा स्थापित की, जो ब्रह्मा-विष्णु-महेश का प्रतीक मानी जाती है। खगोल और ज्योतिष में उनका योगदान अतुलनीय है — नक्षत्रों, ग्रहों, और मुहूर्त निर्धारण के विशेषज्ञ थे. आयुर्वेद और मंत्र विज्ञान में भी उनका उल्लेख मिलता है।

ऋषि अत्रि का जीवन साधना, सेवा और संस्कारों की शिक्षा देता है। वे न केवल तपस्वी थे, बल्कि पारिवारिक जीवन में भी आदर्श थे। उनकी पत्नी अनुसूया ने नारी शक्ति और पतिव्रता धर्म की उच्चतम मिसाल प्रस्तुत की, और उनके पुत्रों ने धर्म, योग और शक्ति का सामंजस्य स्थापित किया।

सप्तऋषि में श्रेष्ठ थे, अत्रि मुनि सुजान।
जिनसे रोशन आज भी, धर्म–सत्य का पथ ज्ञान।।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं।)

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