एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (ADR) और अन्य संगठनों ने चुनाव आयोग के इस फरमान के खिलाफ याचिका दायर की है। कांग्रेस, राजद, वाम दलों समेत कई सामाजिक संगठनों ने मतदाता सूची (Voter list) संशोधन की इस प्रक्रिया का विरोध किया है और इसे गरीबों के खिलाफ साजिश करार दिया है। सांसद पप्पू यादव ने तो इसके खिलाफ 9 जुलाई को बिहार बंद का भी आह्वान किया है।
उल्लेखनीय है कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने 1 जुलाई 2025 से मतदाता सूची का विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण यानी स्पेशल इंटेंसिव रीविजन (SIR) शुरू किया है। SIR की यह प्रक्रिया 25 जुलाई तक चलेगी, जिसमें मतदाताओं को नाम जोड़ने, हटाने और संशोधन कराने का अवसर मिलेगा। लेकिन इस अभियान को लेकर राज्य में राजनीति गरमा गई है।
चुनाव आयोग का कहना है कि मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए यह विशेष अभियान चलाया जा रहा है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि 1 जनवरी 2003 की मतदाता सूची में दर्ज नामों को दोबारा दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें केवल फॉर्म भरना होगा। लेकिन 2003 के बाद नाम जुड़वाने वालों को नागरिकता से संबंधित स्व-घोषणा पत्र के साथ जन्म प्रमाणपत्र, मैट्रिक सर्टिफिकेट या माता-पिता के दस्तावेज लगाने होंगे। अभी राज्य भर में 1.5 लाख से अधिक बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर फॉर्म वितरित कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में विभिन्न राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट (BLA) भी शामिल हैं।
चुनाव आयोग को इससे मतदाता सूची की विश्वसनीयता में सुधार होने की उम्मीद है। इससे मृत या फर्जी नाम हट जाएंगे। चुनाव आयोग का कहना है कि अनाथ, दिव्यांग, बुजुर्ग और निरक्षर नागरिकों के लिए विशेष सहायता की व्यवस्था की गई है। इसके बाद मतदाता सूची का सार्वजनिक मसौदा प्रकाशित किया जाएगा ताकि कोई भी आपत्ति या दावा दर्ज करा सके।
विपक्षी दलों की का कहना है कि जो दस्तावेज मांगे जा रहे हैं और जो समयसीमा तय की गई है उसकी वजह से गरीब, मजदूर, दलित, आदिवासी तथा प्रवासी समुदाय मताधिकार से वंचित हो जाएगा। इनमें से अधिकांश के पास जन्म प्रमाणपत्र या मैट्रिक के सर्टिफिकेट जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं। इतना ही नहीं, आधार कार्ड, राशन कार्ड और मनरेगा जॉब कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को भी आयोग नहीं मान रहा है। प्रवासी लोगों के लिए चिंता की बात यह है कि वे बाहर रहकर इस प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाएंगे, जिससे लाखों लोग वास्तविक मतदाता सूची से वंचित हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस याचिका पर सुनवाई के लिए समय नहीं तय किया है। गरीबों को अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही कुछ राहत मिल सकती है।
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