राष्ट्रपति ने प्रदर्शनी का अवलोकन किया और कलाकारों (Artists) से व्यक्तिगत रूप से बातचीत की। अपने संबोधन में उन्होंने कलाकारों के समर्पण की प्रशंसा करते हुए कहा, “ये कलाकृतियां भारत की आत्मा, प्रकृति से हमारे जुड़ाव, हमारी पौराणिक कथाएं और हमारे सामुदायिक जीवन को दर्शाती हैं। मैं इस बात की गहरी प्रशंसा करती हूँ कि आप सभी इन अमूल्य परम्पराओं को इस तरह कायम रख रहे हैं।”
इस अवसर पर इन्दिरी गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) की ओर से सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, क्षेत्रीय केन्द्र रांची के निदेशक डॉ. कुमार संजय झा और रांची केन्द्र की परियोजना सहयोगी सुमेधा सेनगुप्ता उपस्थित थे। परम्परा और सम्मान के प्रतीक स्वरूप राष्ट्रपति को आईजीएनसीए की ओर से एक पारम्परिक साड़ी भेंट की गई।
आईजीएनसीए के क्षेत्रीय केंद्र, रांची के परियोजना सहायकों — बोलो कुमारी उरांव, प्रभात लिंडा तथा डॉ. हिमांशु शेखर ने इस कार्यक्रम में कलाकारों के समन्वय और उनकी भागीदारी के प्रबंधन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सोहराई कला झारखंड की एक धार्मिक और सांस्कृतिक भित्ति चित्रकला परंपरा है, जो मुख्य रूप से फसल कटाई और त्योहारों के अवसर पर आदिवासी समुदायों (Adivasi community) की महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। कलाकार प्राकृतिक मिट्टी के रंगों और बांस के ब्रश से कलाकार मिट्टी की दीवारों पर पशु-पक्षियों, वनस्पतियों और ज्यामितीय आकृतियों के माध्यम से कृषक जीवन और आध्यात्मिक आस्था को सजीव रूप में चित्रित करते हैं।
हज़ारीबाग ज़िले की दस प्रतिष्ठित सोहराई कलाकारों — रुदन देवी, अनिता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, सजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी और रीना देवी ने इस दस दिवसीय रेज़िडेंसी कार्यक्रम (14 से 24 जुलाई 2025 तक) में भाग लिया और अपनी पारम्परिक कला (Traditional art) को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया।
कलाकार मालो देवी और सजवा देवी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, “हम इस पहल का हिस्सा बनकर बेहद खुश हैं। अपने राज्य की सोहराय कला को प्रस्तुत करना एक अद्भुत अनुभव रहा।” यह झारखंड के लिए गर्व का विषय है कि सोहराय कला, जिसे अब तक राष्ट्रीय स्तर पर वैसी पहचान नहीं मिली थी, जैसी गोंड, मिथिला और वारली चित्रकला को मिली है, आज इतने प्रतिष्ठित मंच पर प्रस्तुत हुई और उसे उचित सम्मान मिला।
इस अवसर ने झारखंड की पारम्परिक कला-बुद्धि और सांस्कृतिक समृद्धि को भारत की कला-संस्कृति के परिदृश्य में अग्रिम पंक्ति में स्थान दिलाया है। इस सांस्कृतिक पहल में आईजीएनसीए और उसके रांची स्थित क्षेत्रीय केंद्र ने केंद्रीय भूमिका निभाई। दूरस्थ गांवों से सोहराय कलाकारों की पहचान, समन्वय और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना इनकी सतत मेहनत का परिणाम था। इन प्रयासों ने इस अनोखी जनजातीय कला को राष्ट्रीय मंच पर स्थान दिलाया और कलाकारों को वर्षों से प्रतीक्षित पहचान दिलाई। आईजीएनसीए पारम्परिक कलाओं को संरक्षित करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहा है।
कला उत्सव 2025’ (Kala Utsav 2025) के माध्यम से सोहराय कला को राष्ट्रीय पहचान मिली, जो झारखंड के जनजातीय समुदायों की जीवंत और सतत सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। भारत की देसी कलाओं को बढ़ावा देने और संरक्षित करने की आईजीएनसीए की प्रतिबद्धता ने यह सुनिश्चित किया कि सोहराय की सांस्कृतिक गरिमा और सौंदर्य को देश के सबसे प्रतिष्ठित मंचों में से एक पर उचित सम्मान मिले।
ये भी पढ़ें – गीता को जीवन में उतारने वाले आदर्श साहित्यकार थे ‘जगतबंधु’ : डॉ अनिल सुलभ