एक बार कामदेव को अभिमान हुआ कि मैं बड़े से बड़ा देव हूं। बड़े-बड़े ऋषि मेरे अधीन हो जाते हैं। बड़े-बड़े देवता भी मेरे अधीन रहते हैं । इस अभिमान में कामदेव श्री कृष्ण के पास गया और उनसे कहा -“मेरी और आपकी कुश्ती हो जाए “,संस्कृत में काम का नाम है, मार। समय आने पर काम सभी को मारता है। कामदेव की इच्छा श्री कृष्ण के ऊपर शक्ति आजमाने की हुई।
श्री कृष्ण ने कामदेव से कहा – शिव जी ने तुमको भस्म कर दिया था क्या तू वह भूल गया? कामदेव ने कहा- शिवजी ने मुझे जलाया, यह बात सच है परंतु उसमें मेरी थोड़ी भूल थी। शिव जी समाधि में बैठे थे। तेजोमय ब्रह्म का चिंतन कर रहे थे। पूर्ण सावधान थे। उसी समय मैं उनको मारने गया। मैंने समय का विचार नहीं किया इसलिए मेरी हार हो गई और शिव जी ने मुझे जलाकर भस्म कर दिया। समाधि में बैठे हुए जलावे, इसमें विशेष आश्चर्य नहीं।
प्रभु ने कहा – राम अवतार में भी तेरी हार हुई। कामदेव ने कहा- राम अवतार में तो आप पूर्ण मर्यादा में रहते थे। किसी भी स्त्री का स्पर्श नहीं करते थे। स्त्री के सामने देखते भी नहीं थे। देखते थे तो मात्र भाव से देखते थे। राम अवतार में मर्यादा का पालन कर आपने मेरा पराभव किया, आपने मुझे हरा दिया। मर्यादा में रहकर साधारण जीव भी मुझे हरा सकता है। गृहस्थ आश्रम रूपी किले में रहकर आपने मुझे मारा है। राम अवतार में तो आप एक पत्नी व्रत थे इसलिए आपने मुझे मारा इसमें क्या आश्चर्य ?
श्री कृष्ण ने कहा – तो अब तेरी क्या इच्छा है? कामदेव ने कहा – राम अवतार में आपने मर्यादा में रहकर मुझे हराया था, इसमें कोई खास बात नहीं थी। अब कृष्ण अवतार में आप कोई मर्यादा ना रखो। मर्यादा तो साधारण मनुष्य के लिए है, परमात्मा के लिए नहीं होती।आपको मर्यादा के पालन की क्या जरूरत? सब प्रकार की मर्यादा छोड़कर शरद पूर्णिमा की रात्रि में अनेक स्त्रियों के साथ वृंदावन में आप विहार करो और मैं आपको तीर मारूँ।आप तब भी निर्विकार रहो तो आपकी जीत है और यदि आप काम के अधीन बनो तो मेरी जीत। आप निर्विकार रहो तो ईश्वर और मेरे अधीन रहो तो मैं ईश्वर।
राम अवतार में आपने शरीर से तो क्या, मन से भी किसी स्त्री का स्पर्श नहीं किया। मन से स्पर्श भी पाप है। कृष्ण अवतार में श्री कृष्ण पुष्टि पुरुषोत्तम हैं। काम ने ऐसा माना कि श्री कृष्ण को हराना सरल है। श्री कृष्णा तो गोपियों के साथ, स्त्रियों के साथ मुक्त रूप से विहार करते हैं, इसलिए मैं उन्हें हरा सकूंगा।
श्री कृष्ण से ने कहा- तेरी इच्छा है तो मैं ऐसा ही करूंगा। स्त्रियों से दूर जंगल में बैठकर कंदमूल खाकर संयम पाले, काम को मारे, इसमें कोई आश्चर्य नहीं। प्रत्येक स्त्री में मातृभाव रखें और काम को मारे, इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं। परंतु श्री कृष्ण ने तो स्त्रियों के बीच रहकर काम को मारा। शरद पूर्णिमा की रात्रि में गोपियों के साथ रासलीला में रमण किया और काम के ऊपर विजय प्राप्त की। श्री कृष्ण का स्मरण करने वाले को भी जब काम त्रास नहीं दे सकता तो स्वयं श्री कृष्ण को वह क्या त्रास दे सकता ?
काम की हार हुई। काम ने धनुष – बाण फेंक दिया। रासलीला, यह काम की विजय लीला है ।श्री कृष्णा योगेश्वर हैं।
(मृदुला दूबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं ।)
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गोपिका गीत में भी इसका बहुत अच्छा वर्णन हे! आपने बिल्कुल टीक लिखा हे!
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