चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात के दौरान जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बनाए रखना भारत-चीन संबंधों के आगे बढ़ने की बुनियादी शर्त है। उन्होंने 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच बनी जटिलताओं का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि अब मतभेदों को विवाद में तब्दील नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने तीन प्रमुख सिद्धांतों — पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक संवेदनशीलता और पारस्परिक हित — को भविष्य के रिश्तों का आधार बताया।
चीन का रुख
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उन्होंने भरोसा जताया कि सहयोग बढ़ाकर और संवाद को आगे बढ़ाकर भारत और चीन न केवल एक-दूसरे की सफलता में योगदान देंगे, बल्कि एशिया और दुनिया को स्थिरता भी प्रदान करेंगे। वांग ने तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक संपर्क जैसे मुद्दों पर उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि इससे आपसी विश्वास मजबूत हुआ है।
व्यापक एजेंडा पर चर्चा
बैठक में सीमा विवाद और सुरक्षा मुद्दों के अलावा व्यापार, निवेश, नदी संबंधी जानकारी साझा करने, सीमा व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के बीच संपर्क को गहरा करने जैसे विषयों पर भी चर्चा हुई। जयशंकर ने चीन यात्रा के दौरान उठाई गई भारत की “विशेष चिंताओं” को भी दोहराया। दोनों नेताओं ने वैश्विक हालात पर विचार-विमर्श करते हुए बहुपक्षीय और संतुलित विश्व व्यवस्था की आवश्यकता पर सहमति जताई।
आगे की कूटनीतिक तैयारी
विशेषज्ञों का मानना है कि यह वार्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा की तैयारी का भी हिस्सा है। प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे, जहां उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होने की संभावना है।
नई दिल्ली में हुई यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब भारत-अमेरिका संबंधों में हालिया तनाव के बीच भारत अपनी विदेश नीति में नए विकल्प तलाश रहा है। चीन के साथ बातचीत का यह दौर बताता है कि दोनों देश रिश्तों में आई खटास को पीछे छोड़कर आगे बढ़ने के इच्छुक हैं। हालांकि सीमा मुद्दे अब भी सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों से सहयोग और स्थिरता की नई राह बन सकती है। दोनों पड़ोसी देशों के बीच नए सिरे से रिश्ते को धार देने के प्रयास को ट्रंप की टैरिफ नीति के जरिए दबाव बनाने की कोशिश के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।
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