पढ़ें, लेखिका शेफालिका सिन्हा का पहला कहानी संग्रह “वंश-बेल और अन्य कहानियाँ”

"वंश -बेल और अन्य कहानियाँ" हिंदी की लोकप्रिय कथा लेखिका शेफालिका सिन्हा का पहला कहानी संग्रह है. शेफालिका कई दशकों से हिंदी में कहानियाँ लिखती आयी हैं .इनकी कहानियाँ लगातार हिंदी की लोकप्रिय पारिवारिक पत्रिकाओं में छपती भी रही हैं . 92 पृष्ठ के इस संग्रह में बारह कहानियाँ हैं. सभी कहानियाँ आस पास रोज़ घटित होने वाली घटनाओं पर आधारित हैं. शेफालिका की कहानियों में गजब का कहानीपन है. इन कहानियों में सायास कुछ दिखाने बताने या 'संदेश' देने का प्रयास नहीं किया गया है .किसी पाठक को कुछ सपाट सा भी लग सकता है पर कुछ कृत्रिम ढंग से घटित होता दिखाना कथाकार का उद्देश्य भी नहीं है .हां तीन कथाओं के माध्यम से परिवेश और परिवर्तन की शक्ति को बहुत सामान्य ढंग से दिखाया गया है.

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: August 27, 2025 10:49 pm

संग्रह वंश-बेल और अन्य कहानियाँ की लगभग सभी कहानियाँ मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई हैं.किसी भी पात्र में कोई चमत्कारिक शक्ति या परिवर्तन होते नहीं दिखाया गया है. सारी पीड़ा, सारा द्वंद्व मन के भीतर ही होता दिखाया गया है. आम निम्न मध्यवर्गीय ,पारंपरिक परिवारों की परिस्थिति और आकांक्षाओं का रोचक दस्तावेज़ हैं शेफालिका की कहानियाँ. हिंदी के प्रतिष्ठित विद्वान ,नाटककार लेखक प्रो. सिद्धनाथ कुमार की पुत्री शेफालिका को साहित्यिक अभिरुचि, भाषा और संस्कार विरासत में मिली है .इस संग्रह के कहानियों की भाषा सुंदर है.

कथाकार के कई पात्र झारखंड में बोली जाने वाली स्थानीय भाषा का भी इस्तेमाल कर रहे हैं जो कहानियों को अधिक रोचक और विश्वसनीय बना देता है. कहानियों के शीर्षक देखिये : 1.वंशबेल2. बुधनी .3.अपना घर4.अबला5.मिसेज सेवा नाथ 6.राधा का क्या हुआ ?7.यही है जिंदगी 8.रास्ता सपनों का 9.रेत का महत्व 10.उपलब्धि 11.सत्यमेव जयते और12.ज्ञान विज्ञान. जहाँ पहली कहानी “वंश- बेल”ही पुरानी पारंपरिक सोच पर एक अपरोक्ष कटाक्ष है वहीं “सत्यमेव जयते” जैसी घटना सार्वजनिक और राजनीति में विघटन का जीवंत चित्रण है . “बुधनी”कहानी मानवीय सम्बन्धों और आदिवासी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के साथ होने वाले छल का एक फोटोग्राफिक वर्णन लगता है.

संग्रह की बाकी सारी कहानी भी निम्न मध्य वर्ग की मान्यताओं, आकांक्षाओं , वर्जनाओं और अभिलाषाओं को बहुत सरल भाषा में बयान करती है . कहानी “अबला”में लेखिका के इन पंक्तियों को देखिये “……अगर जीजा जी को कुछ हो जाता तो दीदी उन्हें भुला पाती?वो तो उनकी याद के सहारे दोनों बच्चों की परवरिश कर लेती.घर और बाहर दोनों मोर्चों को संभाल लेती, पर एक पुरुष के लिए पत्नी के ना रहने पर घर चलाना, मुश्किल हो जाता है, वह अकेला हो जाता है. यही कारण है कि पत्नी की मृत्यु के बाद,दूसरी और ज़रूरत पड़ी तो तीसरी को ले आता है.मटल्सब सब दृष्टि का हेर फेर है क्योंकि तब कमज़ोर कौन हुआ,स्त्री या पुरुष?” ये है एक मध्यवर्ग के महिला की सोच. कहानी पढ़ते हुए ऐसा एहसास होता है कि कहानियों को जल्दी से समेट लिया गया हो.थोड़े विस्तार की गुंजाइश है लगभग सभी कहानियों में. पुस्तक की छपाई सुंदर है.

संग्रह:वंश -बेल और अन्य कहानियाँ

लेखिका:शेफालिका सिन्हा,  पृष्ठ:92, मूल्य:रु.200

प्रकाशक: Xpress Publishing

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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