अज्ञान सत्य से दूर और ज्ञान हमें मोक्ष की ओर ले जाता है

ज्ञान की स्थापना जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है। इसे हम मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और सनातन धर्म शिक्षा जैसे शैक्षिक प्रयासों से प्राप्त कर सकते हैं। ज्ञान हमें मोक्ष की ओर ले जाता है, जो आत्म-ज्ञान (आत्म-साक्षात्कार) से संभव है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: September 9, 2025 8:06 pm

आत्म-ज्ञान का अर्थ है — यह जानना कि हम सत-चित-आनंद हैं: शुद्ध चेतना, आनंद और प्रेम का दिव्य स्वरूप। स्वामी विवेकानंद कहते हैं —

“तुम ईश्वर के बच्चे हो, अमर आत्माएँ हो, मुक्त आत्माएँ हो। उठो, और यह भ्रम त्याग दो कि तुम भेड़ हो।”

अज्ञान का स्वरूप: अज्ञान वह आवरण है जो हमें सत्य से दूर ले जाता है। यह संसार को स्थायी मानने, दुख का कारण बाहर ढूँढ़ने, और शरीर-अहंकार को “मैं” समझने में प्रकट होता है। गोस्वामी तुलसीदास भी कहते हैं —

“अज्ञानं मूलं सर्वेषां, दुःखानां जनकं नृणाम्।”

(सभी दुखों की जड़ अज्ञान है।)

कबीर ने अज्ञान की तुलना अंधकार से की है —

“अज्ञान अंधकार में, भटका सब संसार।

ज्ञान रूप रवि उदय से, मिटा तमस अपार॥”

कथा: अज्ञान और ज्ञान का दीपक

एक राजा ने सोचा कि सोने-चाँदी के दीपक जगाकर अंधकार मिटाया जा सकता है। परंतु रात होते ही अंधेरा लौट आता। एक साधु ने समझाया — “बाहर का अंधकार दीपक से मिटता है, पर मन का अंधकार केवल ज्ञान से।”

संदेश यह है कि बाहरी वैभव से अज्ञान नहीं मिटता, इसके लिए भीतर ज्ञान का दीपक जलाना पड़ता है।

अज्ञान से मुक्ति के उपाय

1. ज्ञान और सत्संग – शास्त्रों और संतों की संगति।

2. भक्ति और प्रेम – हृदय को निर्मल करना।

3. ध्यान और आत्मचिंतन – भीतर सत्य का अनुभव।

वेद कहते हैं:-

“असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय॥”

(हे प्रभु! मुझे असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो।)

अज्ञान जीवन का पहला शत्रु है और ज्ञान उसका सबसे बड़ा पराजयकारक। गुरु, सत्संग, भक्ति और आत्मचिंतन से ही यह अंधकार दूर होता है। अज्ञान का अंत ही ज्ञान की शुरुआत है, और ज्ञान ही वह दीपक है जो हमें मोक्ष की ओर ले जाता है।

(मृदुला दूबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं।)

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