आख़िर हम मनाते ही क्यों हैं, हिन्दी दिवस समारोह ? हिन्दी दिवस पर साहित्य सम्मेलन में उठा प्रश्न

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आज 'हिन्दी दिवस समारोह' बहुत धूमधाम से मनाया गया। पूर्व की भाँति इस वर्ष भी 14 हिन्दी-सेवियों को 'साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान' से अलंकृत किया गया।किंतु यह भी प्रश्न उठा कि, जब भारत की संविधान सभा के निर्णय का अनुपालन हुआ ही नहीं, और हिन्दी अभी भी भारत सरकार की 'राजभाषा' बन ही नहीं पायी तो हम हिन्दी दिवस मनाते ही क्यों हैं?

साहित्य सम्मेलन में आयोजित 'हिन्दी दिवस समारोह' में 14 हिन्दी-सेवियों को दिया गया 'साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान'
Written By : डेस्क | Updated on: September 14, 2025 7:15 pm

समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि हिन्दी दिवस समारोह का अर्थ यह है कि भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को भारत सरकार की राजभाषा बनाए जाने का जो संकल्प लिया हम उसे पूरा करें। हम सबको संविधान-निर्माताओं के उस प्रण को पूरा करना चाहिए जो अपूर्ण रह गया है। बल्कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित की जानी चाहिए।

समारोह के मुख्य अतिथि तथा बिहार के पुलिस महानिदेशक एवं राज्य कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष आलोक राज ने कहा कि हिन्दी केवल हमारी मातृ-भाषा और राष्ट्र-भाषा ही नहीं हमारी अस्मिता है, हमारी पहचान है। हिन्दी सहज, सरल और मधुर भाषा है। यह पूर्णतः वैज्ञानिक है।

लोक सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद करीमी ने कहा कि हिन्दी हमारे दिल की भाषा है। यह एक भाषा ही नहीं हमारी संस्कृति है। इसमें राधा के पायल की झंकार भी है और कृष्ण की मुरली की तान भी। यह अघोषित राष्ट्रभाषा है। किंतु शीघ्र ही घोषित राष्ट्र-भाषा होगी।

सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने संसार के समस्त हिन्दी-भाषियों और हिन्दी-प्रेमियों को बधाई दी, किंतु संविधान-सभा के निर्णय के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका अनुपालन न हो सकने पर अपनी पीड़ा की भी अभिव्यक्ति की। उन्होंने कहा कि कभी-कभी वे यह सोचने लगते हैं कि जब संधान-निर्माताओं के इस निर्णय का अनुपालन हो ही नहीं पाया तो हम यह दिवस मनाते ही क्यों है?

डा सुलभ ने कहा कि यह किसी भी राष्ट्र और समाज के लिए शर्म और चिता की बात है कि उसके राजकाज के लिए, उसकी अपनी कोई भाषा नही है। उधार ली गई एक विदेशी भाषा विकल्प के रूप में आज भी वैधानिक रूप से भारत सरकार की राजभाषा बनी हुई है। भारत की सरकार को चाहिए कि अब विना किसी विलम्ब के हिन्दी को राष्ट्र-भाषा घोषित करे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा तथा भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र कुमार यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर 14 साहित्यकारों, डा सुमन मेहरोत्रा,मुज़फ़्फ़रपुर, सुधीर सिंह ‘सुधाकर’, नोएडा, उत्तरप्रदेश, डा अनीता राकेश, अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा, वरिष्ठ नाटककार डा अशोक प्रियदर्शी, सविता सिंह ‘मीरा’, जमशेदपुर, श्रीमती पूनम कतरियार, सविता राज, मुज़फ़्फ़रपुर, अमृता सिन्हा, पटना, डा विभीषण कुमार, मधेपुरा, डा रजनीश कुमार यादव, ग़ाज़ीपुर, उत्तरप्रदेश, अविनाश भारती, दीप शिखा, छपरा तथा हिमांशु चक्रपाणि, औरंगाबाद को ‘साहित्य सम्मेलन हिन्दी-सेवी सम्मान’ से विभूषित किया गया।

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