जिसे संजीवनी समझकर दिया गया, वही बच्चों की ज़िंदगी के लिए काल बन गया। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में 11 बच्चों की मौत की वजह खाँसी की दवा (कफ़ सिरप) को बताया जा रहा है। पड़ोसी राज्य राजस्थान में भी ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसने स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर कर रख दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार, इन सभी मामलों में किडनी फेल होना बच्चों के दुखद अंत का मुख्य कारण रहा। अकेले मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले से 9 मामले सामने आए हैं। इनमें से पाँच बच्चों ने Coldref ब्रांड नाम का सिरप लिया था और एक ने Nextro। हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि प्राथमिक जांच में दवाओं में किसी भी तरह की तकनीकी ख़राबी या मिलावट नहीं मिली है।
इसके बावजूद, एहतियातन स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने एक परामर्श जारी किया है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि दो साल से छोटे बच्चों को कफ़ सिरप न दिया जाए। इसके अलावा निजी अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि किसी भी गंभीर स्थिति में बीमार बच्चों को तुरंत सिविल अस्पताल भेजा जाए, ताकि उन्हें बेहतर निगरानी और उपचार मिल सके।
यह घटना दवा नियमन और बाल चिकित्सा सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अब भी बड़ी संख्या में दवाएँ बिना पर्चे के आसानी से उपलब्ध हैं, और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते लोग अक्सर बिना विशेषज्ञ सलाह के बच्चों को दवाएँ दे देते हैं। यह प्रवृत्ति गंभीर परिणाम ला सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम ने सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों के सामने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या भारत में दवाओं की निगरानी व्यवस्था और बच्चों की दवा सुरक्षा मानदंड पर्याप्त है, या फिर इसमें और सुधार की आवश्यकता है।
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