Bihar Election Result इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियाँ अभूतपूर्व रूप से असरदार रहीं। चुनाव से पहले लगातार बिहार के दौरे, विभिन्न सामाजिक समूहों से सीधा संवाद, और भाषणों में विकास के साथ-साथ “जंगलराज” की वापसी का खतरा याद दिलाना—इन सभी ने मतदाताओं की भावनाओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा। महागठबंधन की सरकार को कानून-व्यवस्था और स्थिरता के संदर्भ में कमजोर बताना एनडीए की रणनीति का केंद्रीय तत्व था, जिसने विशेषकर महिलाओं और मध्यम वर्ग के मतदाताओं को निर्णायक रूप से प्रभावित किया।
महिलाओं का वोट इस चुनाव का सबसे बड़ा Turning Point साबित हुआ। प्रधानमंत्री द्वारा 1.5 करोड़ जीविका दीदियों के खाते में 10 हजार रुपये सीधे भेजने की घोषणा ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सबसे मजबूत स्तंभ—महिला समूहों—को एनडीए के पक्ष में बड़े पैमाने पर संगठित किया। इन दीदियों की आर्थिक स्थिति में सुधार, आत्मनिर्भरता की बढ़ोतरी और सरकारी योजनाओं के सीधे लाभ ने मतदाताओं में भरोसा पैदा किया कि केंद्र की योजनाएँ केवल कागजों पर नहीं हैं, बल्कि धरातल पर असर कर रही हैं।
इसी के साथ बिहार को केंद्र से 14 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएँ, जिनमें सड़क, रेलवे, चिकित्सा ढांचा, शिक्षा संस्थान, एयरपोर्ट, डिजिटल कनेक्टिविटी और औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार शामिल है, एनडीए द्वारा विकास का ठोस प्रमाण बनकर प्रस्तुत की गईं। डबल-इंजन सरकार के मॉडल को मतदाताओं के सामने एक स्थायी विकास विकल्प के रूप में स्थापित किया गया।
एक और महत्वपूर्ण पहलू था बिहार से बाहर काम कर रहे प्रवासी मजदूरों और युवाओं को वापस बुलाकर मतदान कराना। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और बंगाल में काम कर रहे बड़ी संख्या में बिहारी मतदाता विशेष बसों, समूहों और नेटवर्किंग के ज़रिये मतदान के दिन बिहार पहुँचे। यह आयोजन विभिन्न सामाजिक समूहों, एनडीए घटक दलों और स्थानीय कोर कमिटियों की सक्रिय भागीदारी से संभव हुआ। इन प्रवासी वोटों ने कई सीटों पर निर्णायक अंतर बनाया।
गृह मंत्री अमित शाह की चुनावी रणनीति भी इस परिणाम का एक केंद्रीय स्तंभ रही। संगठन के भीतर असंतुष्टों को मनाना, बगावत रोकना, टिकट वितरण में मतभेदों को शांत करना, और सहयोगी दलों को एक साथ रखकर अभियान को समन्वित रूप से चलाना—इन सभी ने मिलकर चुनावी मशीनरी को एकजुट बनाए रखा। अमित शाह की सूक्ष्म स्तर पर हस्तक्षेप करने की शैली—ब्लॉक स्तर तक समीकरणों को देखकर निर्णय करना—एनडीए को अंदरूनी एकजुटता दिलाने में कारगर रही।
सबसे अहम, बूथ स्तर तक बीजेपी और एनडीए कार्यकर्ताओं की तैनाती ने मतदान के दिन भारी अंतर पैदा किया। बूथ प्रबंधन, पन्ना-प्रमुख संस्कृति, मतदाता सूची का घर-घर सत्यापन, और स्थानीय समुदायों में निरंतर संपर्क—इन सभी ने सुनिश्चित किया कि एनडीए का समर्थन केवल भीड़ वाले जनसभाओं तक सीमित न रहे, बल्कि वास्तविक वोटों में परिवर्तित हो। कई सीटों पर 500–2000 वोटों का अंतर बताता है कि बूथ स्तर की मशीनरी अत्यंत सटीक तरीके से काम कर रही थी।
दूसरी ओर महागठबंधन के लिए नेतृत्व-स्पष्टता, संगठनात्मक सामंजस्य, और विश्वसनीयता का संकट बड़ा नुकसान साबित हुआ। पिछली सरकारों की छवि, विशेषकर कानून-व्यवस्था को लेकर बनी धारणा, महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी रही। जनता में यह संदेश गहराई से बैठ गया कि एनडीए के स्थान पर यदि वे सत्ता में आते हैं तो सुरक्षा, स्थिरता और निवेश का वातावरण प्रभावित हो सकता है।
कुल मिलाकर, इस चुनाव का परिणाम केवल लहर नहीं बल्कि एक सुविचारित, बहुस्तरीय और अत्यधिक संगठित चुनावी मॉडल का उदाहरण है। विकास, सुरक्षा, महिलाओं की भागीदारी, संगठनात्मक एकजुटता, प्रवासी मतदाताओं की सक्रियता, बूथ-प्रबंधन, और केंद्रीय नेतृत्व के निरंतर प्रयासों के संयुक्त प्रभाव ने बिहार में एनडीए को रिकॉर्ड-तोड़ बहुमत दिलाया है। यह बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत भी है, जहाँ जनादेश बेहद स्पष्ट है—स्थिरता, विकास और भरोसा सर्वोपरि है।
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