बीजेपी अपने नेता प्रेम कुमार को अध्यक्ष बनाकर एक तीर से कई निशाने साधने में कामयाब रही। पहला, उनका 35 वर्षों का विधायी अनुभव पार्टी और गठबंधन के लिए एक भरोसेमंद व्यवस्था सुनिश्चित करता है। वे 1990 से लगातार नौ बार विधायक चुने जाते रहे हैं, जिससे सदन की कार्यप्रणाली और नियमों की उनकी समझ बेहद मजबूत है।
दूसरा, हाल के राजनीतिक समीकरणों में अध्यक्ष का पद बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अनुभवशील और सदन संचालन में निपुण नेता के चयन से एनडीए को विधान प्रक्रिया को सुचारु रूप से आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी। सरकार के विधायी एजेंडे के दौरान व्यवधान कम रहने की संभावना बढ़ेगी।
तीसरा, प्रेम कुमार अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में शुमार कहार जाति से आते हैं। ऐसे वरिष्ठ नेता को अध्यक्ष पद देकर BJP ने सामाजिक संतुलन साधने और अपने सामाजिक आधार को और मजबूत करके एक बड़ा संदेश दिया है कि बीजेपी पिछड़ों और अति पिछड़ों की हितैषी है। जब बीजेपी ने अति पिछड़ा कार्ड खेला तो जदयू या राजद के नेताओं के पास इसका समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, यही वजह रही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव भी प्रेम कुमार को अध्यक्ष के आसन तक लाक उन्हें बिठाये । यह पार्टी की भविष्य की राजनीतिक रणनीति में अहम भूमिका निभा सकता है।
चौथी लेकिन सबसे बड़ी रणनीतिक जीत ये है कि विधायकों के दलबदल के दौरान या सदन की कार्यवाही के दौरान हंगामे की स्थिति में विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार बहुत अधिक बढ़ जाता है। विधायकों को या उनके गुट को योग्य का अयोग्य ठहराना ये विधानसभा अध्यक्ष के ही अधिकार क्षेत्र में आता है।
प्रेम कुमार का राजनीतिक सफर
डॉ. प्रेम कुमार का जन्म 5 अगस्त 1955 को हुआ। वे उच्च शिक्षित हैं—उन्होंने एमए, एलएलबी और मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की है। छात्र राजनीति के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में आने के बाद वे भाजपा के संगठन में सक्रिय हुए और 1990 में पहली बार गया टाउन सीट से विधायक बने।
इसके बाद उन्होंने 1995, 2000, फरवरी 2005, अक्टूबर 2005, 2010, 2015, 2020 और 2025 में लगातार जीत दर्ज कर इतिहास रचा। वे बिहार के दुर्लभ नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने लगातार नौ बार चुनाव जीता है।
प्रेम कुमार ने अपने लंबे राजनीतिक करियर में कृषि, सहकारिता, पर्यावरण एवं वन, खाद्य आपूर्ति सहित कई विभागों में मंत्री के रूप में कार्य किया है। 2015 में वे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। उनकी छवि शांत, सुलझे और नियमों का पालन करने वाले नेता के रूप में बनी है।
सदन में स्थिरता का संदेश
उनका सर्वसम्मति से चुन लिया जाना यह दर्शाता है कि राजनीतिक खींचतान के बीच भी विभिन्न दलों ने एक अनुभवी और निष्पक्ष नेतृत्व को प्राथमिकता दी। आने वाले दिनों में विधानसभा चलाने की उनकी क्षमता, सदन की गरिमा बनाए रखने और पक्ष–विपक्ष दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने की उनकी भूमिका पर सबकी निगाहें रहेंगी।
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