गीता चौबे ‘गूंज’ ने उपन्यास ‘सलोनी’ में किया है सराहनीय अभिनव प्रयोग

सभ्यता के प्रारंभ से ही लोगों को कथा कहानी सुनना बहुत प्रिय रहा है. कहानी सुनाने की प्रक्रिया ने अलग अलग शताब्दियों में कथा वाचन और फिर कथा -कहानी और उपन्यास के रूप में विकसित हुआ. काफी समय तक राजाओं के दरबार में कथा कहानी सुनाने वाले लोग होते थे! धार्मिक कथा वाचन की लंबी परम्परा पूरी दुनिया में रही है. उपन्यास लेखन पंद्रहवीं शताब्दी के बाद विशेष रूप से दिखाई देता है. प्राचीन काल में विष्णु शर्मा का पंचतंत्र या अंग्रेज़ी में जॉफ़्रे चॉसर का 'कैंटरबरी टेल्स' भी पद्य कथा ही है।

उपन्यास के आवरण का अंश
Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: December 4, 2025 1:24 am

फ्रेंच में पहले और अंग्रेज़ी, रूसी भाषा में सत्रहवीं शताब्दी से वृहत उपन्यास का रूप का अस्तित्व देखने में आता है. रूसी उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय का उपन्यास ‘वार एंड पीस’ को अब भी श्रेष्ठतम उपन्यास माना जाता है. अंग्रेज़ी उपन्यासकार एमिली ब्रोंटे का उपन्यास ‘वूदरिंग हाइट्स’,को तो गद्य में ‘महाकाव्य’ माना जाता है. उत्तरी भारत में सबसे पहले मैथिली में चौदहवी शताब्दी में ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने गद्य में ‘वर्णरत्नाकर’ और “पुरुष परीक्षा ” लिखा था .अंग्रेज़ी में अठारहवीं व-उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में दीर्घ उपन्यास लिखे गए .थॉमस हार्डी, चार्ल्स डिकेन्स जैसे उपन्यासकारों ने तो दीर्घ उपन्यास लिखे. बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेज़ी में दीर्घ कथाओं लिखने की प्रथा चली. उसे थोड़ा बृहत रूप देकर ‘नावेल’ नहीं कह ‘नोवेल्ला’ कहा गया. हिंदी में धार्मिक कथाओं के बाद आया नाटक और फिर कथा, उपन्यास.

प्रारंभिक दौर में धार्मिक चरित्र और पात्र ने लेखकों को आकर्षित किया. हिंदी में प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट माना जाता है. और सच में हिंदी के वर्तमान उपन्यास रूप की शुरुआत प्रेमचंद से ही शुरू होती है. आज हिंदी का उपन्यास संसार विश्व के किसी भी भाषा से कमतर नहीं है. हिंदी में लगभग एक दर्जन पुस्तकों की लेखिका गीता चौबे ‘गूंज’ का यह तीसरा उपन्यास है .लेखिका ने एक निम्न मध्यवर्गीय कस्बाई युवती “सलोनी” छत्तीस घंटे की ट्रेन यात्रा के माध्यम से सारे परिदृश्य को समेटने की चेस्टा है. इस उपन्यास की धुरी है सलोनी. एक सामान्य सरल युवती जिसमें सतही तौर पर कुछ भी विशेष नहीं है. उसे उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं हो सकी है.वहीं कहानी का नायक तुलनात्मक दृष्टि से संभ्रांत परिवार का शिक्षित युवक है जो दक्षिण भारत के एक बड़े शहर मेंअच्छी नौकरी करता है. इक्कीसवीं सदी में कोरोना काल के आसपास की कहानी है यह. इसका इशारा उपन्यास में किया गया है.

रोचक,आकर्षक और विश्वसनीय बात यह है कि इस युग में भी दादा और पोते का मधुर संबंध है. ध्यान देने की बात है कि किसी संबंधी के विवाह कार्यक्रम में सलोनी की गतिविधि और सहजता देखकर दादाजी ने अपने पोते के लिए सलोनी को चुना था. दादाजी ने अपने बेटे अर्थात सूरज के पिता को सलोनी के पिता से रिश्ते की बात करने को कहा था . और सूरज उपन्यास में बताता भी है कि दादाजी को कुछ विशेष दिखा होगा तभी तो उन्होंने सलोनी को सूरज की पत्नी के रूप में चुना. उपन्यास में उपन्यासकार लगभग प्रत्येक पृष्ठ पर उपस्थित हैं. बहुत सारी बातें जो चरित्रों के माध्यम से कहलाया जा सकता था उसे लेखिका कहती हैं. ऐसा करने से प्रायः पात्रों को ‘आर्गेनिक’ विकास के मार्ग में थोड़ा अवरोध लगता है. इन पंक्तियों पर ध्यान दें: ‘प्यार तो किसी से भी हो सकता है। धीरे धीरे जान -पहचान भी हो ही जाएगी। प्यार का आनंद तो इस बात में हो सबसे अधिक है कि किसी को जाने बिना प्यार होना। प्रथम बार में ही दिल के तारों का मिलान हो जाना। बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी के दिल में उतर जाना। कितना सुखद है न!’ कहानी में रेल यात्रा में कई यात्री आते हैं और उनकी भी कहानी ‘सब प्लाट’ की तरह चलती है पर किसी भी सब प्लाट को विकसित होने का अवसर नहीं मिल सका है. यदि एक दो सब प्लाट को समानांतर विकसित होने का अवसर मिलता तो मूल कहानी को और अधिक बल मिलता.

उपन्यासकार की भाषा प्रांजल है. मुख्य रूप से तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है पर कहीं कहीं तद्भव शब्दों का प्रयोग “सायास” लगता है. प्रारंभ की इन पंक्तियों को देखें: “पीछे छूट गए घरों से उठता धुआँ इस बात की तस्दीक कर रहा था कि चूल्हे जल चुके हैं और गर्म-गर्म रोटियां सिकी जा चुकी हैं या सिकने की तैयारी में होंगी शायद रात्रि -भोजन के लिए” 128 पृष्ठ के उपन्यास को थोड़ी जल्दी में समेटने की कोशिश की है उपन्यासकार ने.

थोड़ा विस्तार देने से प्रायः पात्रों के चरित्र को विकसित होने का अवसर मिलता! उपन्यासकार ने एक अभिनव प्रयोग कर एक सीमित अवधि में घटनाओं, फ्लैशबैक और डायरी के माध्यम से भारतीय परम्परा के विवाह को श्रेष्ठ बताने का प्रयास किया है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए! सलोनी का चरित्र डायरी के माध्यम से दिखाने की कोशिश की गई है. यदि सलोनी के युवा दिवंगत बुआ के प्लाट को थोड़ा विकसित किया जाता तो सलोनी के प्लाट को निखरने में और सहायता मिलती! एक अच्छे प्लाट और विषय को चुनकर सुंदर भाषा में उपन्यास लिखने के लिए उपन्यासकार गीता चौबे गूंज को बधाई ! उपन्यास पठनीय है और अंतिम पृष्ठ तक कौतुक बना रहता है.उपन्यास की छपाई अच्छी है. सुंदर कागज का प्रयोग किया गया है.

उपन्यास: सलोनी, उपन्यासकार: गीता चौबे गूंज, पृष्ठ: 128,

प्रकाशन: वनिका पब्लिकेशन, प्रकाशन वर्ष: 2025, मूल्य: रु.260.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

ये भी पढ़ें :-रोमांचित कर देने वाला आनंद देता है यतीश कुमार का काव्य संग्रह “आविर्भाव”

2 thoughts on “गीता चौबे ‘गूंज’ ने उपन्यास ‘सलोनी’ में किया है सराहनीय अभिनव प्रयोग

  1. आ प्रमोद झा जी! आपकी सराहनापूर्ण प्रतिक्रिया एवं दिए गए उपयुक्त सुझाव निश्चित रूप से मेरे लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। हार्दिक धन्यवाद!

  2. सलोनी नाम से ही नायिका प्रधान उपन्यास लग रहा है जिसकी समीक्षा बहुत ही उम्दा लगी..। इसके लिए आप दोनो बधाई के पात्र हैं। गीता चौबे ‘गूंज’ जी को हार्दिक बधाई! किताब पर सटीक समीक्षा हेतु आपको साधुवाद!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *