विशेष अतिथि के रूप में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजातीय आयोग की सदस्य डॉ. आशा लकड़ा उपस्थित रहीं, जिन्होंने पुस्तक की विषयवस्तु को सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के व्यापक परिप्रेक्ष्य में रेखांकित किया। पुस्तक की लेखिका हैं समाजशास्त्री एवं शिक्षिका डॉ. स्वीटी तिवारी। कार्यक्रम का स्वागत वक्तव्य आईजीएनसीए के जनपद सम्पदा विभाग के अध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार ने दिया। उन्होंने ‘ज्ञानपथ शृंखला’ की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए इसे समकालीन बौद्धिक संवाद का एक सशक्त मंच बताया। इस अवसर वनवासी कल्याण आश्रम के श्री सुरेश कुलकर्णी की भी गरिमामय उपस्थिति रही।
मुख्य अतिथि किरन रिजिजू ने कहा कि जनजातीय समुदायों को जो सम्मान मिलना चाहिए था, आज़ादी के 60-70 सालों तक नहीं मिला। बस उनका प्रतिनिधित्व सांकेतिक ही रहा। जब मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो मुझे लगा कि आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले और आदिवासियों को समझने वाले कुछ लोग और कुछ संगठन ही हैं। जैसे वनवासी कल्याण आश्रम और कुछ दूसरे संगठन हैं। वे सेवा भाव के साथ, उनके बीच में रहकर काम करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप आदिवासियों के बीच में जाकर उनकी सेवा का नाम पर उनका धर्मांतरण करेंगे, तो उनका आइडेंटिटी बदल जाएगी। उनके सशक्तिकरण के नाम पर आप उनके कल्चर को डाइल्यूट कर देंगे। मूल रूप से, आदिवासी की पहचान अगर आप खत्म कर देंगे तो फिर सेवा का कोई मतलब नहीं होता है। आदिवासियों के लिए उनकी पहचान, उनका सम्मान दोनों बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समुदायों के सशक्तिकरण के लिए महत्त्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में जनजातीय समुदाय के तीन लोगों को मंत्री बनाया। पहली बार किसी सरकार में जनजातीय समुदाय से तीन लोगों को मंत्री बनाया गया है। उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि जनजातीय समुदाय के लोगों के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को रेखांकित कीजिए। प्रधानमंत्री ने भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की। यह बिरसा मुंडा का जन्म दिवस ही नहीं, बल्कि पूरे आदिवासियों को सम्मान देने का कार्यक्रम है।
उन्होंने कहा, भारत में जनजातीय समुदाय का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन हम जनजातीय लोग खुद नहीं जानते कि हमारा योगदान क्या है। अपनी क्षमता को नहीं पहचानते कि हम क्या कर सकते हैं! ऐसे समय में एकेडमिक सेक्टर में इस तरह की पुस्तक आना बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने लेखिका की प्रशंसा करते हुए कहा, मैं भी अपनी तरफ से किताब को आगे बढ़ाने, इसके प्रचार-प्रसार की कोशिश करूंगा।
लेखिका स्वीटी तिवारी ने पुस्तक के बारे में बताते हुए जनजातीय समुदायों की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक यात्रा पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि घोर अंधकार में भी जनजातीय समाज की लौ क्षीण नहीं हुई। जनजातीय समाज के प्रति उपेक्षा के भाव को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि हम ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की बात करते हैं, लेकिन ‘गंगा-दामोदर तहज़ीब’ बात नहीं करते। ग़ौरतलब है कि दामोदर जनजातीय बहुलता वाले राज्य झारखंड की एक प्रमुख नदी है। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा केवल साक्षरता नहीं है, बल्कि अधिकार बोध है।
यह कार्यक्रम विद्वानों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों तथा संस्कृति-अध्ययन से जुड़े प्रबुद्ध श्रोताओं की उल्लेखनीय उपस्थिति के बीच सम्पन्न हुआ। यह आयोजन भारतीय जनजातीय समाज की बहुआयामी समझ को गहराई प्रदान करने वाला तथा अकादमिक दृष्टि से अत्यंत सार्थक सिद्ध हुआ।
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