इनमें निहित गूढ़ार्थ को समझकर ही हम सब स्वयं के कौशल का विकास कर सकते हैं।
अब क्रम से चलते हैं नव रूप की यात्रा ( शिशु कन्या से लेकर परिपक्व सिद्धिदात्री ) पर और जानते हैं कि वर्तमान समय में दुर्गा के 9 रूप की आराधना कौशल विकास के लिए क्यों आवश्यक है|
1 – माँ शैलपुत्री:- छोटी बच्ची हैं। शैल-पर्वत पुत्री हैं। सुदृढ़ हैं लेकिन GROUNDED हैं हम चाहे कितना भी बल क्यों न प्राप्त कर लें पर जमीन से हमारा जुड़ाव बना रहे।
2 – माँ ब्रह्मचारिणी– एक छात्रा हैं जो अपने इच्छित की प्राप्ति के लिए ‘तपस्या’ करती है ‘तपस्या’ अर्थात दृढ़ निश्चय एवं समर्पण के साथ कठिन परिश्रम करती हैं। इन्होने अपना सारि ध्यान अपने लक्ष पर केंद्रित करके अपनी समस्त ऊर्जा को निरंतर तैलवत धारा के सामान अपने लक्ष्य की ओर प्रवाहित कर दिया।
3 – माँ चंद्रघंटा– दृढ निश्चयी होकर पूर्ण समर्पित भाव से किये गए कठिन परिश्रम से इन्होने अपने इच्छित ‘शिव’ को पा लिया है। पति का आभूषण स्वयं के भाल पर सजाकर ये उच्छृंखल नहीं हुई हैं बल्कि शांत और संयमित हैं।
4 – माँ कुष्मांडा– इनसे ही ब्रह्माण्ड, ग्रह, नक्षत्र आदि सृजित हुए| एक गर्भवती महिला के रूप में उन्हें जाना जा सकता है। ब्रह्माण्ड सृजन की शक्ति होने का बावजूद इनमें उस बात का दम्भ नहीं है।
5 – माँ स्कंदमाता– गर्भस्थ शिशु अब अंक में है। एक हाथ में बच्चा सँभालते हुए उसी हाथ से ताड़कासुर का वध करती है। भावनात्मक रूप से मजबूत, बुद्धिमान और बहुकार्य में दक्ष हैं।
6 – माँ कात्यायिनी बढ़ती उम्र में भी इनकी शक्ति क्षीण नहीं होती है। महिषासुर का वध करती हैं।
7 – माँ कालरात्रि/ शुभंकरी के रूप में रक्तबीज का समूल नाश करती हैं। ऐसा करने में उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं होता। अभयता और जोखिम उठाने की कुशलता और नकारात्मक एवं और विध्वंसक ताकतों का समूल नाश करने की शक्ति हमें माँ कालरात्रि से प्राप्त हो।
8 – सिंहवाहिनी माँ महागौरी– पति के वृषभ की सवारी नहीं अब इनके पास स्वयं की सवारी आ गयी है। इसे इन्होनें अपने सामर्थ्य से अर्जित किया है। एक विवाहित महिला का यह वैयक्तिक विकास है। परन्तु इसके पश्चात इनमें दंभ नहीं आता। पति के साथ कोई बड़ापन का भाव नहीं आता। शांत, संयमित और वैयक्तिक मौलिकता यह कुशलता हमें माँ महागौरी से प्राप्त हो।
9. माँ सिद्धिदात्री:-
लोगों को साबित करके कुछ भी हासिल कर लो यह मूल मंत्र देती हैं। शिव को जब सिद्धि देती हैं तब उनके आधे अंग में स्थान पाती हैं।
आइये इस नवरात्र में हम सब माँ के नवों रूप का आवाहन करें, उन्हें जागृत करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। अपने अपने घरों में स्वस्तिक बनाएं, स्वस्ति वाचन करें। दशो दिशाओं से आने वाले शुभ और सकारात्मक ऊर्जा हमें अपना आशीर्वाद दें। हमारे समस्त कौशल का विकास करें। समस्त सृष्टि के साथ एकात्म स्थापित करें।

@ बी कृष्णा (ज्योतिषी, योग और अध्यात्मिक चिंतक )
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