धरना देने वाले पहलवानों को मिली जीत, अदालत ने BJP सांसद के खिलाफ तय किये आरोप

दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को भारतीय कुश्ती महासंघ (Wrestling Federation of India) के पूर्व प्रमुख और भाजपा सांसद (BJP MP) बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) के खिलाफ महिला पहलवानों (female wrestlers) द्वारा दर्ज मामले में यौन उत्पीड़न और अन्य आरोप तय करने के आदेश दिये।

भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह
Written By : वंदना दुबे | Updated on: May 11, 2024 5:38 am

अदालत ने कई धाराओं के तहत आरोप तय करने का दिया आदेश

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट प्रियंका राजपूत ने बृजभूषण के खिलाफ धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से हमला या आपराधिक बल), 354 ए (यौन उत्पीड़न) और आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया। अदालत 21 मई को औपचारिक रूप से आरोप तय करेगी।

इसने मामले में सह-आरोपी और पूर्व डब्ल्यूएफआई (WFI) सहायक सचिव विनोद तोमर (Vinod Tomar) के खिलाफ भी आरोप तय करने का आदेश दिया।

हालाँकि, अदालत ने पर्याप्त सबूतों की कमी का हवाला देते हुए छह महिला पहलवानों में से एक द्वारा दायर एक शिकायत में Brij Bhushan को बरी कर दिया।

विरोध करने वाले पहलवानों ने क्या कहा?

पहलवान साक्षी मलिक (Sakshi Malik) और बजरंग पुनिया (Bajrang Punia) ने फैसले की सराहना की और अदालत को धन्यवाद दिया।

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) के कांस्य पदक विजेता बजरंग ने एक्स पर लिखा, ”यह महिला पहलवानों के संघर्ष की बड़ी जीत है. देश की बेटियों को ऐसे कठिन दौर से गुजरना पड़ा है, लेकिन इस फैसले से राहत मिलेगी। शर्म भी आनी चाहिए।”

रियो ओलंपिक (Rio Olympic) की कांस्य पदक विजेता मलिक ने कहा, “हम माननीय न्यायालय को धन्यवाद देते हैं। हमें कई रातें गर्मी और बारिश में सड़कों पर सोना पड़ा, अपना स्थिर करियर छोड़ना पड़ा, तब जाकर हम न्याय की लड़ाई में कुछ कदम आगे बढ़ पाए हैं।”

मामले में अब तक क्या प्रगति हुई है?

पिछले जून में, दिल्ली पुलिस ने छह बार के सांसद सिंह के खिलाफ मामले में 15 जून को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से हमला या आपराधिक बल), 354ए (यौन उत्पीड़न), 354डी (पीछा करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप पत्र दायर किया था।

पुलिस ने सिंह के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम का मामला हटाने की सिफारिश की थी। क्लोजर रिपोर्ट के बावजूद, अदालत को यह निर्णय लेना है कि इसे स्वीकार किया जाए या आगे की जांच का आदेश दिया जाए।

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