हिंदी में इन दिनों लघु कथा का ज्यादा चलन है. इसके विपरीत राशि की कहानियां थोड़ी लंबी हैं. किताब के हिसाब यानी Book Review में रोचक बात यह है कि पात्रों के मनोवैज्ञानिक स्थिति के बारे में चर्चा से पहले राशि पाठकों को उसके पूरे माहौल और परिस्थिति से खूबसूरती से रूबरू कराती हैं. पूरे परिवेश और माहौल के फोटोग्राफिक चित्रण से पाठक एक तरह से उस पूरे माहौल में प्रवेश कर जाता है और कहानी को महसूसने लगता है. दो सौ चौदह पृष्ठों के इस संग्रह की पांचों कहानियों की भाषा बहुत सरल पर परिष्कृत है.
मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग से आते हैं सारे पात्र
लगभग सारे पात्र मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग से आते हैं .मध्य वर्ग की पुरानी मान्यताओं और आधुनिकता से उत्पन्न अंतर्विरोधों से पात्र जूझते रहते हैं. राशि के पात्र किसी विशेष सपने की दुनिया के पात्र तो नहीं हैं पर आम निम्न मध्य वर्ग और मध्य वर्ग के लोगों की तरह सपने तो देखते हैं. अति उच्च वर्ग के लोग सपने देखते नहीं ‘जीते’ हैं पर निम्न मध्य वर्ग और मध्य वर्ग के लोग कई पुश्तों तक सपने ही देखते रह जाते हैं!
जीवन परिस्थिति को बेहतर समझने में सहायक हैं कहानियां
हिंदी कहानियाँ समकालीन समाज का सबसे सार्थक और महत्वपूर्ण प्रतिबिम्ब हैं. इसके माध्यम से समकालीन समाज का सामाजिक,आर्थिक,समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक विश्लेषण बहुत सरलता से किया जा सकता हैं. पुस्तक समीक्षा (Book Review) के दौरान पाया कि मूलतः मध्य वर्ग में उलझी राशि की कहानियां आधुनिक भारत के सम्पूर्ण जीवन परिस्थिति को बेहतर समझने में सहायक सिद्ध होंगी. संग्रह ‘स्वप्न वृक्ष’ की कहानियां हैं स्वप्न वृक्ष, रौंद, एक सच ऐसा भी, नियुक्ति-पत्र और सिहरन. राशि अपने संग्रह के शुरू में ‘अपनी बात’में कहती हैं ” इन कहानियों के माध्यम से मौजूदा मुद्दों और चुनौतियों से उत्पन्न वैयक्तिक और सामाजिक क्षरण के सभी प्रश्नों के निदान आप पर छोड़ती हूँ……” सच ही कहानी समाप्त होने पर दूसरी कहानी शुरू होती है पाठक के मन में.
पढ़ें राशि की एक कथा का अंश
राशि की एक कथा का अंश देखिये: ” पिछले दिनों राजस्थान के जोधपुर जिले में एक परीक्षा का कर सेंटर पड़ा था. उस परीक्षा के लिए अजित ने एक लड़की से डेढ़ लाख रुपये ले रखे थे और मुझे अपने एक मित्र के साथ उस लड़की के एडमिट कार्ड पर परीक्षा देने भेज दिया. न जाने किसने चुगली कर दी या किसने कहाँ से पुलिस को इनफार्मेशन दे दी कि सेन्टर पर पुलिस आ गई. साथ में दो महिला कांस्टेबल भी थी. उन्हें देखकर तो मेरी रूह कांप उठी. इससे पहले कि मैं ईश्वर को भी याद कर पाती दोनों महिला क कांस्टेबलों ने मुझे फर्जी परीक्षा देने के जुर्म में पकड़ लिया और मेरे हाथों में हथकड़ी लगा दी गयी”. संग्रह पठनीय और संग्रहणीय है.
(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)
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