बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग का पहला अंग ” सम्मा वाचा” अर्थात सम्यक वाणी । बिलकुल सही सही वाणी (speech) को सम्यक वाणी कहते हैं।
सबसे पहले हम अपनी वाणी को सही और शुद्व बनाए।
वाणी के मैल
झूठ बोलना
निंदा करना
चुगली करना
व्यर्थ फिजुल बोलना
कड़वा बोलना
झूठ बोलने से वाणी मैली होती है और कोई भी हमारा विश्वास नहीं करता। निंदा करने से हमारा मन बहुत भारी हो जाता है और दुख का अनुभव करता है। चुगली करके परस्पर लड़ाई- झगड़े करवाना बुरी बात है। अक्सर देखा है कि बिना जरुरत के व्यर्थ की बातों में बहुत रस आता है और बाद में मन खिन्न होता है। अहंकार और द्वेष भाव होने से कभी कभी हम ह्रदय को चोट पहुंचाने वाले बहुत कड़बे वचन बोल देते हैं। वाणी से हमारे मन की स्थिति का पता चल जाता है।मन यदि बातूनी होगा तो वाणी से हम चुप नहीं रह सकते।
मीठी वाणी का होता है चमत्कारिक प्रभाव
जब भी हम मीठी वाणी बोलते हैं तो चमत्कारिक प्रभाव होता है। मीठी वाणी से शत्रु भी मित्र बन जाते हैं।
महर्षि पतंजलि ने वाक शुद्धि के लिए व्याकरण महाभाष्य लिखा।
वाणी ही हमें सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा देती है और गर्त में भी ले जा सकती है। मूंह से शब्द निकलते ही मूर्खता अथवा बुद्धिमानी का पता लग जाता है। ये मन सच्चे प्रेम को न जानता हुआ खूब कड़वा बोलकर अपने अहंकार को भोजन देता है।
मीठी वाणी व्यक्ति का आभूषण है
विनोबा भावे जी ने कहा है कि कम और सुन्दर शब्दों में बात को कहा जाय तो हमारा चिंतन प्रभावशाली बनता है। वाणी हमारा परिचय देती है। वाणी मन का दर्पण है। हर वक्त बेवजह बोलते रहने से चेहरे की शोभा कम होती है।
वाणी एक अदभुत शक्ति और कला है
वाणी (speech) जो केवल मनुष्य को ही प्राप्त है इसलिए हमें वाणी का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा सोच समझ कर बोलना चाहिए। कड़वा बोलने से बहुत प्रिय रिश्तों में भी खटास आ जाती है। बोलने से पहले हम अपने मन को हम अच्छी तरह से जांच लें। यदि हमारे मन में अहंकार और द्वेष होगा या मन हीन भावना से भरा होगा तो हम कड़वा ही बोलेंगे। गीता में श्री कृष्ण का कहना है कि जो सीधी और स्प्ष्ट बात कहता है उसकी वाणी (speech) कठोर होती है लेकिन वह किसी के साथ छल नहीं करता।
भक्ति मार्ग के अनुसार, वाणी से हरि नाम लेते रहना चाहिए। जब भी हम मीठी वाणी बोलते हैं तो सकारात्मकता बढ़ जाती है।
वाणी में विनम्रता हो
रामजी ने कहा – “मोहि प्राण प्रिय अस मम वानी”।
भक्ति और भाव से युक्त अति नीच प्राणी मुझे प्रिय है – ऐसी मेरी वाणी है।
हमारी वाणी (speech) में विनम्रता हो। अभिमान से भरी वाणी कभी सुख नहीं देती।
कवीरदास जी कहते हैं – “शब्द सम्हारे बोलिए, शब्द के हाथ न पांव। एक शब्द औषधि करे एक करे घाव “।।
अर्थात विनम्रता और अपनेपन से भरे शब्द हैं तो औषधि की तरह से सुनने वाले का दुख दूर कर सुख पहुंचाएंगे। यदि हम कर्कश और दंभ से भरे शब्द बोलेंगे तो व्यक्ति के हृदय पार भारी चोट लगेगी और फिर हमें भी कहां सुख शान्ति।
मन के भीतर के वातावरण के अनुसार कोमल और कठोर शब्द निकलते हैं। जैसा हमारा मन होगा वैसे ही शब्द बाहर आयेंगे क्योंकि शब्दों के हाथ और पैर नहीं होते। यदि विनम्रता और अपनेपन से भरे शब्द हैं तो औषधि की तरह से सुनने वाले को प्रसन्नता का अनुभव कराएंगे।
“तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजे चहूं ओर। वशीकरण एक मंत्र है, तजिय वचन कठोर”।।
“दोनों रहिमन एक से जो लो बोलत नाही। जान परत है काक पिक ऋतु बसंत के माहि।।
रहीमदासजी कहते हैं कि कौआ और कोयल दोनों दिखने में एक से लगते हैं लेकिन बोलते ही फर्क पता चल जाता है। कौआ कर्कश बोलता है इसलिए किसी के भी कानों को उसका बोलना अच्छा नहीं लगता और कोयल बहुत मीठा बोलती है इसलिए उसकी आवाज कानों को मीठी लगती है।
बुद्ध कहते हैं – मैं उसे ब्राह्मण कहता हूं जो कर्कशता रहित, शिक्षायुक्त और सच्ची वाणी बोलता है जिससे किसी का दिल न दुखी हो।
हमारी वाणी (speech) बहुत सुन्दर हो। बोलते समय पूरा ध्यान शब्दों पर हो। मन को सुन्दर और शांत रखते हुए प्रिय ही बोलना चाहिए। वाणी का संयम अवश्य हो।