आखिर किस बात का गुमान है भाजपा को

भाजपा यह दावा करती है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। उसके सदस्यों की संख्या 18 करोड़ से अधिक है। यदि इतने लोग उसके पीछे खड़े हैं तो निःसंदेह उसकी पहुँच बड़ी है। इसी संख्या को वह अपनी सबसे बड़ी ताकत मानती है और उसके मन में पराजित होने का भाव नहीं आता।

भारतीय जनता पार्टी
Written By : श्याम नारायण प्रधान | Updated on: May 2, 2024 8:37 pm

आम चुनाव सिर पर हैं। 2024 में हो रहे लोक सभा के इस चुनाव में दो पक्ष दिखाई दे रहे हैं। एक पक्ष भारतीय जनता पार्टी (BJP) का है और दूसरा पक्ष अन्य सभी दलों का है जिसमें कांग्रेस समेत तमाम राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दल शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इस बार 400 पार का नारा बुलन्द किया है। भाजपा को ऐसा क्यों लगने लगा है कि इस बार राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (NDA) को जनता इतनी सीटें देगी? भाजपा स्वयं 370 से ऊपर सीटें लाने का दावा कर रही है। उनका यह आत्म विश्वास किसी ठोस धरातल पर खड़ा है या फिर केवल चुनावी जुमला है?

भाजपा यह दावा करती है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। उसके सदस्यों की संख्या 18 करोड़ से अधिक है। यदि इतने लोग उसके पीछे खड़े हैं तो निःसंदेह उसकी पहुँच बड़ी है। इसी संख्या को वह अपनी सबसे बड़ी ताकत मानती है और उसके मन में पराजित होने का भाव नहीं आता। हिमाचल प्रदेश व कनार्टक के विधान सभा चुनाव में उसके हाथ से बागडोर का छिन जाना उसे बहुत उद्वेलित नहीं करता है। उस हार को भी सहज भाव से स्वीकार करते हुए उसने 2024 के लोक सभा चुनाव में एक ऐसा लक्ष्य साधने के लिए कमर कसी है जिसे सभी विश्लेषण करने वाले विद्वान व्यावहारिक नहीं मान रहे हैं। फिर भी मल्लिकार्जुन खड़गे का संसद में दिए गए वक्तव्य को भाजपा अपनी जीत का प्रमाण पत्र मान रही है।

भाजपा यह भी दावा कर रही है कि उसके पास मोदी है। मोदी की लोकप्रियता सबसे ऊपर है। नारों की झड़ी लगी हुई है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ से अब आगे चले गए हैं और बात मोदी की गारंटी तक आ गई है। स्वयं प्रधानमंत्री अपने कई भाषणों में ऐसा कह चुके हैं। किन्तु इन गारंटियों में किसान बिल खो चुका है। शाहीन बाग उन पर हँस रहा है। अलग-अलग राज्यों में होने वाली हिन्दुओं की हत्याओं पर उनकी प्रतिक्रियाएं चकित करती हैं। नूपुर शर्मा का मामला प्रश्न करता हुआ दिख रहा है। राम मंदिर का निर्माण, महाकाल कॉरिडोर, काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और उनकी पूजा-पाठ व त्रिपुण्ड लगे चित्र किस बात की गारण्टी दे रहे है? और तो और मोदी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को आजादी का लड़ाई का केंद्र बिन्दु बताना गारंटी का विस्तार ही लगता है।

भाजपा के इतराने में अन्य कई मुद्दे आइने की तरह सामने खड़े हैं। जिस हिन्दुत्व के रथ पर आरूढ़ होकर भाजपा व मोदी केन्द्र की सत्ता पर आसीन हुए, उसके पहिए में बाँस फँसाने वाले बिन्दुओं पर भी उन्हें ध्यान देना चाहिए। यदि अन्य धर्मों के धर्म स्थल शासन के अधीन नहीं हैं तो हिन्दू मन्दिर क्यों हैं? क्या अल्पसंख्यकों के तृप्तीकरण के सहारे शासन में बने रहना चाहते हैं? क्या इसीलिए अल्पसंख्यक की परिभाषा देने से कन्नी काट रहे हैं? वक्फ अधिनियम भाजपा को चुभता नहीं हैं क्या? इतना ही नहीं, वक्फ सम्पत्तियों का डिजिटलीकरण हो रहा है। यानी उनकी दावेदारी पक्की हो रही है। मोदी जी का गोल टोपी नहीं पहनना और अजमेर शरीफ के लिए चादर भेजना एक अलग किस्म की गारंटी है।

मोदी सरकार ने कहने को तो हज सब्सिटी खत्म कर दी है किन्तु पिछले दरवाजे से कई छूट और मदद के जरिए बजट कई गुना बढ़ा दिया है। हज पर जाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी (दो लाख) कराने का काम मोदी जी करा आए थे सउदी अरब से। लिहाजा, 50,000 रुपये
की मदद और जीएसटी को 5 प्रतिशत करने से कुल मिलाकर जोड़ेंगे तो मदद 881 करोड़ तक जा बैठती है। दूसरी तरफ, पूजा स्थल अधिनियम को लेकर उनकी विराट सोच पता नहीं किधर देखने लगती है? भारतीय अर्थव्यवस्था को तीसरे स्थान पर ले जाने वाली हिम्मत समाज को समरस या जातिविहीन बनाने की पहल करती नहीं दिखती है। आरक्षण का नाम लेने से डर लगता है। हिन्दू हृदय सम्राट होने का तमगा लिए मोदी जी क्या सचमुच हिन्दुओं के लिए कुछ करते दिखाई देते हैं? फिर भी यही गुमान है कि उनके अलावा हिन्दुओं का और कौन है।

भाजपा इस चुनाव में यह गुमान भी पाले बैठी है कि इस बार दक्षिण में उनकी अधिक सीटें आएंगी और उनके 400 पार का नारा सही साबित हो जाएगा। के. अन्नामलाई के रूप में तमिलनाडु में उन्हें एक सशक्त नेता मिला है और उनसे भाजपा ने बड़ी आस लगा रखी है। उड़ीसा में उन्हें लग रहा है कि नवीन पटनायक की कम होती लोकप्रियता का भी उन्हें लाभ मिलेगा। उधर, बंगाल पर तो बड़ा दाव लगा रखा है। संदेशखाली की महिलाओं की पीड़ा और उन पर हुए अत्याचारों का आख्यान उनकी स्वीकार्यता बढ़ाएगा कि नहीं, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा किन्तु अपने कार्यकर्ताओं की हत्या या उन पर होने वाले अत्याचार की पतवार लेकर चुनावी सागर में नाव आसानी से चला पाने का गुमान तो है ही भाजपा को।

एक पन्ना भाजपा के वाशिंग मशीन होने को लेकर भी है। विपक्षी दलों में जितने भी दागी नेता थे, यदि वे भाजपा में आ गए हैं तो उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप हाशिए पर चले गए हैं। महाराष्ट्र में अजीत पवार हों या राजस्थान में लालचंद कटारिया हों, राजेन्द्र यादव हों या मध्य प्रदेश में सुरेश पचौरी हों, या अन्य ऐसे तमाम नेता जो सपने में ईडी की रेड से डर जाते हों, भाजपा में आकर आश्वस्त हो गए हैं कि अब वे किसी भी आरोप से घिरे नहीं हैं।

भाजपा में उन नेताओं का आना सुरक्षित रहने की गारंटी बन गया है। यदि ऐसा है तो भाजपा के गुमान पर प्रश्न उठेंगे ही। इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वह भी भ्रष्टाचार से उनकी लड़ाई के दावे की पोल खोलता है। इस हमाम में और दल भी हैं, इसलिए इस पर जनता में कोई नारा नहीं उछाला गया है।

भाजपा यह भी माने बैठी है कि जब तक राहुल गाँधी कांग्रेस में नीति निर्धारण का काम करते रहेंगे तब तक भाजपा को बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ेगा जीतने के लिए। इसके अलावा कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान भी भाजपा के लिए संजीवनी बनी है। राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के बीच चलने वाले शीत युद्ध की खबर तो लगभग सभी को है ही।

कुल मिलाकर मीडिया या सोशल मीडिया पर उनकी लोकप्रियता आसमान छूती दिख रही है। यह लोकप्रियता आभासी है या वास्तविक, इसकी परख चुनाव परिणाम करेंगे। तब तक भाजपा अपने गुमान को और ऊँचा उठाए और इस आम चुनाव में 400 पार को जमीन पर
उतारे। तभी माना जाएगा कि वे जनता को सम्मोहित करने में सफल रहे हैं।

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