विदेश मंत्री जयशंकर ( EXTERNAL AFFAIRS MINISTER JAISHANKER) ने भी कह दिया है कि हम अपने हित-अहित समझते हैं। इस समझौते से पूरे क्षेत्र को लाभ होगा। अमेरिका खुद इस योजना की तारीफ कर चुका है।
दस साल करेगा संचालन भारत
भारत चाबहार परियोजना से काफी समय से जुड़ा था लेकिन पहली बार उसे लेकर कोई समझौता हुआ। इस समझौते का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि आम चुनावों के बीच केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनवाल ( SARBANAND SONOWAL) सोमवार को ईरान गए और वहां इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के अनुसार अब दस साल तक भारत इस बंदरगाह का संचालन करेगा। भारत पहली बार किसी विदेशी पोर्ट का संचालन करने जा रहा है।
अमेरिका की धमकी
लेकिन समझौता होते ही अमेरिका को मिर्ची लग गई। उसने भारत को असहज करने वाली प्रतिक्रिया व्यक्त की। उसके विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ( VEDANT PATEL) ने कहा कि ईरान के साथ किसी भी तरह का समझौता करने वाले देश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि कोई देश ईरान के साथ कोई समझौता करता है तो उसे उससे जुड़े जोखिम और प्रतिबंधों के बारे में पता होना चाहिए।
प्रतिबंध लगाना आसान नहीं
तो क्या अमेरिका समझता है कि समझौता करते समय भारत इन जोखिमों को नहीं जानता था। वह खूब जानता था और जो कुछ भी किया गया है खूब सोच समझ कर किया गया है।अमेरिका ने तत्काल कोई प्रतिबंध लगाने की बात नहीं की है और न ही ऐसा करने जा रहा है क्यों कि अमेरिका बदलते वैश्विक समीकरणों को खूब अच्छी तरह जानता है और भारत पर प्रतिबंध लगाना उसके लिए भी जोखिम लेना ही होगा।
भारत की बड़ी उपलब्धि
ईरान के साथ चाबहार पोर्ट पर समझौता होना भारत की बड़ी भू राजनीतिक उपलब्धि है। इससे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का जवाब भी दिया जा सकता है और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को भी नियंत्रित किया जा सकता है। यदि यह इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से जुड़ जाता है तो ईरान हो कर भारत के लिए रूस का रास्ता खुल जाएगा। 2016 में जब पीएम मोदी ईरान गए थे, समझौता उसी समय हो गया था लेकिन लेकिन इस बार उसे और विस्तारित किया गया है। 2018 में जब ईरान के राष्ट्रपति रूहानी ( PRESIDENT HASSAN ROUHANI) भारत आए थे तो बंदरगाह के विकास में भारत की भूमिका और बढ़ाने की बात हुई थी। विदेश मंत्री जयशंकर ने इसी साल जनवरी में जाकर बात और बढ़ाई।