आनापान ध्यान : जानें, विपश्यना ध्यान के पहले चरण के बारे में

आनापान (Ānāpāna) ध्यान बुद्ध द्वारा सिखाई गई एक गहरी ध्यान विधि है, जिसमें हम अपनी सांस के आने और जाने के प्राकृतिक प्रवाह को देखते हैं। यह विपश्यना ध्यान का पहला चरण है और ध्यान करने के इच्छुक हर व्यक्ति के लिए अत्यंत उपयोगी है। इस अभ्यास से मन शांत होता है, चित्त की शुद्धि होती है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग खुलता है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: March 4, 2025 12:46 pm

“आनापान” शब्द दो भागों में विभाजित है:

“आना” का अर्थ है सांस का भीतर जाना (inhalation)।

“पान” का अर्थ है सांस का बाहर आना (exhalation)।

इस ध्यान में हम केवल सांस के स्वाभाविक प्रवाह को देखते हैं, न तो इसे बदलते हैं और न ही नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।

बुद्ध ने कहा है:-
“जब कोई व्यक्ति अपनी सांसों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करता है, तो वह धीरे-धीरे मन के विकारों से मुक्त होता जाता है और गहरी शांति प्राप्त करता है।”

आनापान ध्यान करने की विधि:

1. ध्यान के लिए सही स्थान और समय चुनें

शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें, जहाँ कोई व्यवधान न हो।

सुबह जल्दी या रात को सोने से पहले अभ्यास करना अच्छा होता है।

यदि संभव हो, तो नियमित समय पर ध्यान करें ताकि मन उसकी आदत बना सके।

2. सही आसन में बैठें

आप सुखासन, पद्मासन, अर्धपद्मासन में बैठ सकते हैं, या यदि ज़रूरी हो तो कुर्सी पर भी बैठ सकते हैं।

रीढ़ सीधी और शरीर सहज रहे, जिससे अधिक समय तक बैठने में कठिनाई न हो।

हाथ घुटनों पर रखें या गोद में रखें, जिससे शरीर सहजता से स्थिर रह सके।

3. आँखें बंद करें और शरीर को आराम दें।

आँखें हल्के से बंद कर लें और पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें।

किसी भी प्रकार का तनाव या बल न लगाएँ।

4. सांस को प्राकृतिक रूप से महसूस करें।

अपने ध्यान को नाक के अग्रभाग (nostrils) पर ले जाएँ।

सांस को न रोके, न तेज़ करें और न ही धीमा करें।

सिर्फ अनुभव करें कि हवा नाक के अंदर जाती और बाहर आती है।

सांस के साथ कोई मंत्र या शब्द दोहराने की आवश्यकता नहीं है।

5. विचारों को न पकड़ें, केवल सांस को देखें।

यदि मन भटकता है (जो कि स्वाभाविक है), तो धीरे-धीरे ध्यान वापस सांस पर ले आएँ।

किसी भी विचार, भावना या छवि को दबाएँ नहीं, बल्कि उन्हें बिना उलझे आने-जाने दें।

जब भी ध्यान भटके, प्रेमपूर्वक इसे सांस की अनुभूति पर वापस लाएँ।

6. सांस की सूक्ष्मता को समझें।

जैसे-जैसे ध्यान गहरा होगा, आप महसूस करेंगे कि सांस हल्की और सूक्ष्म हो रही है।

ध्यान दें कि जब मन शांत होता है तो सांस धीमी हो जाती है, और जब मन अशांत होता है तो सांस तेज़ होती है।

7. अभ्यास की अवधि

शुरुआत में 5-10 मिनट करें और धीरे-धीरे 30-60 मिनट तक बढ़ाएँ।

नियमित रूप से अभ्यास करने से गहरा लाभ मिलेगा।

आनापान ध्यान के लाभ:

1. मानसिक शांति और स्थिरता

मन के भटकाव को कम करता है और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति को बढ़ाता है।अनावश्यक विचारों और चिंता से मुक्ति मिलती है।

2. तनाव, चिंता और अवसाद से राहत

मन की बेचैनी और घबराहट को कम करता है।

दिमाग को संतुलित और शांत रखने में मदद करता है।

3. आत्म-जागरूकता बढ़ती है।

स्वयं के विचारों, भावनाओं और प्रतिक्रियाओं को समझने की क्षमता बढ़ती है। हमें पता चलता है कि हमारा मन किस प्रकार काम करता है।

4. स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है।

पढ़ाई और कार्यक्षेत्र में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है।

निर्णय लेने की शक्ति और समस्या समाधान में सुधार होता है।

5. आध्यात्मिक उन्नति होती है।

मन की अशुद्धियाँ धीरे-धीरे समाप्त होती हैं, जैसे क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय आदि।चित्त की शुद्धि होती है और निर्वाण की ओर प्रगति होती है।

6. स्वास्थ्य लाभ:

रक्तचाप नियंत्रित होता है।

नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।

शरीर में संतुलन और ऊर्जा बनी रहती है

निष्कर्ष:

आनापान ध्यान एक सरल, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली ध्यान पद्धति है, जो न केवल मानसिक शांति लाती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। यह ध्यान किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी है, चाहे वह आध्यात्मिक यात्रा पर हो या केवल मन की शांति चाहता हो।

महत्वपूर्ण बात:

नियमित अभ्यास करें।

धैर्य और प्रेमपूर्वक इस अभ्यास को करें।

धीरे-धीरे ध्यान का समय बढ़ाएँ और इसके गहरे लाभों का अनुभव करें।

( मृदुला दुबे योग प्रशिक्षक और अध्यात्म की जानकार हँ।)

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