Film Review : न्याय और आत्मसम्मान की सशक्त आवाज़ है ‘हक़’

फिल्म “हक़” शाहबानो केस से प्रेरित एक संवेदनशील कथा है। यामी गौतम ने शाज़िया के संघर्ष और स्वाभिमान को प्रभावशाली अभिनय से जीवंत किया है।

Written By : Ramnath Rajesh | Updated on: November 7, 2025 1:32 am

अब्बास दूसरी शादी करता है, तीन तलाक की आड़ लेता है और धर्म को अपने स्वार्थ की ढाल की तरह इस्तेमाल करता है। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह धर्म को दोषी नहीं ठहराती।

यह स्पष्ट करती है कि अन्याय धर्म से नहीं, बल्कि उसके दुरुपयोग से जन्म लेता है, जब अहंकार, शक्ति और अज्ञान उसके साथ मिल जाते हैं।

यामी गौतम ने शाज़िया के भीतर के दर्द, संघर्ष, असुरक्षा, आत्मसम्मान और साहस को बेहद संतुलित और गहरी अभिव्यक्ति के साथ परदे पर उतारा है। उनकी आँखों की भाषा, उनके ठहरे हुए संवाद और मौन तक भी असर छोड़ते हैं। यह कहना उचित है कि यामी ने अपने करियर के सबसे परिपक्व और सशक्त प्रदर्शन में से एक दिया है।

इमरान हाशमी ने अब्बास के शांत लेकिन नियंत्रित करने वाले, प्रेम का दिखावा करने वाले लेकिन भीतर से आत्मकेन्द्रित व्यक्तित्व को बिना अतिरंजना के बेहद यथार्थवादी ढंग से निभाया है।

सुपर्ण वर्मा का निर्देशन संयमित, परिपक्व और साफ़ दृष्टि वाला है। वे कहानी को किसी धार्मिक टकराव में नहीं ले जाते, बल्कि इसे मानवीय अधिकार और न्याय की लड़ाई के रूप में सामने रखते हैं। ‘हक़’ – न्याय और आत्मसम्मान की सशक्त आवाज़ है। फिल्म में अनावश्यक शोर या नाटकीयता नहीं है — उसकी शक्ति उसकी सादगी और सच्चाई में है।

सिनेमैटोग्राफी भावनाओं और माहौल को बारीकी से पकड़ती है।बैकग्राउंड स्कोर दृश्यों को सहारा देता है, हावी नहीं होता।फिल्म की गति स्थिर है, जो इसके विषय के अनुरूप है।

“हक़” एक ऐसी फिल्म है, जिसे सिर्फ देखा नहीं जाता, महसूस किया जाता है।यह न्याय, स्वाभिमान और साहस की वह आवाज़ है, जिसे इतिहास चाहे दबाने की कितनी भी कोशिश करे, वह अपनी जगह छोड़ती नहीं। ये देखने योग्य। सोचने योग्य। याद रखने योग्य है।

रेटिंग: 4/5

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