मोह पर शास्त्रों से उद्धरण:
श्रीमद्भगवद्गीता (3.27)
“प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥”
भावार्थ:
प्रकृति के गुणों से ही सभी कर्म संपन्न होते हैं, किंतु अहंकारवश मोहित हुआ व्यक्ति सोचता है कि “मैं ही कर्ता हूँ।” यह व्यक्ति को अपने सच्चे स्वरूप से दूर कर देता है.
मोह के परिणाम:
मोह का अर्थ है- किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति लगाव या आसक्ति।
रामचरित मानस की प्रसिद्ध चौपाई-
“मोह पर वश सब जग जानी, मोह न छोड़े कोय।”
तुलसीदासजी गहराई से बताते हैं कि संसार के सभी प्राणी मोह के वश में हैं और इससे मुक्त होना अत्यंत कठिन है।
धृतराष्ट्र के पुत्र मोह के कारण महाभारत हुई। धृतराष्ट्र ने कहा कि सारा ज्ञान जानते हुए भी मैं इससे विवश हूं।
इसी प्रकार कैकेयी बहुत बड़ी वीरांगना और विदुषी होकर भी पुत्र मोह से बुद्धि भ्रष्ट हो गयी और समस्त संसार में अपमानित और कलंकित हुई।
मोह के वशीभूत हो तपस्वी भारत हिरण के बच्चे के विरह में व्याकुल हो अगले जन्म में स्वयं हिरण बने।
1. इससे विवेक नष्ट हो जाता है, जिससे व्यक्ति सत्य और असत्य का भेद नहीं कर पाता।
2. व्यक्ति स्वयं को इस शरीर और मन से जोड़कर देखने लगता है, जिससे वह “मैं” और “मेरा” में फँस जाता है।
4. मोह हमें संसार के भंवर में फँसा देता है और आध्यात्मिक उन्नति की राह में बाधा डालता है।
मोह से मुक्ति के उपाय
1 .सत्संग, स्वाध्याय और ध्यान से सही और गलत का ज्ञान प्राप्त करें।
2 .(वैराग्य) – यह समझें कि यह संसार नश्वर है, और किसी भी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अत्यधिक आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
3. भक्ति और समर्पण – ईश्वर या सत्य के प्रति समर्पण करके इसको भंग किया जा सकता है।
4. विपश्यना और धयान का अभ्यास करें।
ध्यान से आत्म-दर्शन होता है, जिससे यह समझ आता है कि मोह केवल एक मानसिक भ्रांति है।
नियमित रूप से विपश्यना या अनापान सति का अभ्यास करें, जिससे मन शांत और संतुलित होगा।
5. अनित्यता (अनिच्छा) को समझें
हर वस्तु, व्यक्ति और स्थिति परिवर्तनशील है। यह जानने से ये स्वतः ही कम हो जाता है।
जब हम चीजों को अस्थायी मानते हैं, तो उनमें आसक्ति धीरे-धीरे घटने लगती है।
6. अज्ञान (अविद्या) से मोह उत्पन्न होता है। सही दृष्टिकोण (सम्यक दृष्टि) अपनाकर हम इसे कम कर सकते हैं।
7. बुद्ध के शिक्षाओं का अध्ययन करें, जिससे मन में स्पष्टता आएगी।
8. कृतज्ञता और संतोष का विकास करें।
9. संतोषी मन मोह से दूर रहता है। जो हमारे पास है, उसी में संतुष्ट रहना सीखें।
10. कृतज्ञता का अभ्यास करें, जिससे इच्छाएं कम होंगी और ये हटेगा।
11. साक्षी: जब भी किसी वस्तु, व्यक्ति या भावना के प्रति ये बढ़े तो उसे एक “द्रष्टा” के रूप में देखें।
भावनाओं को पकड़ने या उनसे लड़ने की बजाय, उन्हें एक बहते हुए बादल की तरह देखने की आदत डालें।
11. त्याग और सेवा का अभ्यास करें।
ये स्वार्थ से उपजता है, जबकि निःस्वार्थ सेवा करने से यह कम हो जाता है।
जरूरतमंदों की सेवा करें, इससे मन का संकीर्ण स्वभाव विस्तृत होगा।
भगवद गीता, धम्मपद, उपनिषद, या अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें। मुक्त होने के लिए वैराग्य आवश्यक है।
वैराग्य का अर्थ त्याग नहीं, बल्कि किसी चीज़ के प्रति निर्लिप्त भाव रखना है।
जिनका मन मोह से मुक्त है, उनके सान्निध्य में रहने से हमारी सोच बदलती है।
संतों के सत्संग, प्रवचन और शिक्षाओं को सुनें।
मोह को त्यागने का अर्थ यह नहीं कि संसार से भाग जाना चाहिए, बल्कि उसमें रहते हुए निर्लिप्त रहना सीखना चाहिए। जब हम इसे विवेक, ध्यान और स्वाध्याय से नियंत्रित करते हैं, तो हमारा जीवन सहज और आनंदमय हो जाता है।
“जो मोह से मुक्त है, वही सच्चा ज्ञानी है।”
( मृदुला दुबे योग गुरु और अध्यात्म की जानकार हैं।)
ये भी पढ़ें :-आनापान ध्यान : जानें, विपश्यना ध्यान के पहले चरण के बारे में