प्रमुख मंत्र:
प्रत्येक मंत्र का अपना विशिष्ट प्रभाव और उपयोग है — ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फटः यह एक शक्तिशाली बीज मंत्र है। इसका जप साधक को अदृश्य भय, भूत-प्रेत, और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा देता है। कई तांत्रिक और योगी साधना-स्थलों पर इस मंत्र का जप करते हैं ताकि चारों ओर की ऊर्जा शुद्ध बनी रहे।
ॐ हं षं नं गं कंसं खं महाकाल भैरवाय नमःःयह महाकाल भैरव का प्रमुख मंत्र है। यह मंत्र साधक को मृत्यु-भय, मानसिक भ्रम, और दैहिक अशांति से मुक्ति देता है।
उदाहरण: काशी में साधक प्रायः इस मंत्र का जप प्रातःकाल “कालभैरव मंदिर” में करते हैं —मान्यता है कि इससे आयु, साहस और स्थिरता बढ़ती है।
ॐ कालभैरवाय नमःयह सबसे सरल और लोकप्रिय मंत्र है. इसका अर्थ है “मैं भगवान भैरव को नमन करता हूँ।”
उदाहरण:
सामान्य भक्त अपने दैनिक जीवन में इस मंत्र का जप भय, क्रोध या भ्रम की स्थिति में करते हैं। यह मन में दृढ़ता और आत्मविश्वास जगाता है।
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट् : यह मंत्र विशेष रूप से नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा देता है।
उदाहरण:
ग्रामीण भारत में कई साधक इस मंत्र का उपयोग करते हैं जब उन्हें घर या मार्ग में किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति का अनुभव होता है।
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रींः यह बटुक भैरव का प्रसिद्ध मंत्र है। बटुक भैरव भैरवनाथ का बालरूप हैं — वे सरल, स्नेहशील और रक्षक हैं।
उदाहरण:
यह मंत्र अक्सर उन लोगों द्वारा जपा जाता है जो यात्रा, व्यवसाय या पारिवारिक संकट में हों। माना जाता है कि यह मंत्र आपदा (कठिन परिस्थिति) से रक्षण करता है।
भैरवनाथ के कार्य और महत्व:
भैरवनाथ साधक के मार्ग में आने वाली बाधाओं और अज्ञात अवरोधों को नष्ट करते हैं। जैसे कोई अंधेरे में टॉर्च जलाता है, वैसे ही उनका नाम मन के भ्रम को दूर करता है।
भैरव को तांत्रिक परंपरा में शत्रु-विनाशक माना गया है। मगर यह “बाहरी शत्रु” से अधिक आंतरिक शत्रु — जैसे लोभ, मोह, क्रोध — का विनाश है। जो व्यक्ति अपने भीतर के भैरव को जागृत करता है, वह बाहरी भय से मुक्त हो जाता है।
‘भैरव’ का अर्थ ही है “भय का हरण करने वाला”। भैरवनाथ साधक को मृत्यु-भय, अंधकार-भय और असुरक्षा की भावना से मुक्ति देते हैं। भैरवनाथ को काशी (वाराणसी) का कोतवाल कहा गया है।
कहते हैं — बिना भैरव बाबा की अनुमति के कोई भी काशी में टिक नहीं सकता।
काशी के “कालभैरव मंदिर” में आज भी यह विश्वास जीवित है कि
जो व्यक्ति वहाँ दर्शन करता है, उसे शिव स्वयं संरक्षण देते हैं।
माता वैष्णो देवी और भैरव की कथा: भैरवनाथ, गोरखनाथ के शिष्य थे — अत्यंत योगसिद्ध परंतु उन्हें अहंकार हो गया था। वे माता वैष्णो देवी की शक्ति को साधारण नारी समझ बैठे और उनका पीछा किया। माता ने उन्हें कई बार सावधान किया, पर वे नहीं रुके। अंततः माता ने काली का रूप धारण कर उनका सिर काट दिया।
मरते हुए भैरव को ज्ञान हुआ — उन्होंने पश्चात्ताप किया और क्षमा माँगी। माता ने उन्हें मोक्ष का वरदान दिया: “जो भी भक्त मेरे दर्शन के बाद तुम्हारे मंदिर आएगा, वही यात्रा पूर्ण मानी जाएगी।” इसीलिए आज भी वैष्णो देवी यात्रा भैरव बाबा के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब काशी में असुरों का आतंक बढ़ा,
तब भगवान शिव ने अपने क्रोध और तेज से भैरव को उत्पन्न किया।
भैरव ने असुरों का नाश किया और शिव ने उन्हें आदेश दिया —
“काशी की रक्षा तुम्हारे अधीन रहेगी।”
तब से वे काशी के रक्षक देवता — “कोतवाल भैरव” कहलाए।भैरवनाथ का वाहन कुत्ता है — जो निष्ठा, सतर्कता और सुरक्षा का प्रतीक है।
काला कुत्ता विशेष रूप से भैरव का प्रतीक माना जाता है।
माना जाता है — जो व्यक्ति काले कुत्तों को भोजन कराता है, उसे भैरव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसका दुर्भाग्य दूर होता है।
सार — भय से स्वतंत्रता की साधना भैरवनाथ की उपासना हमें यह सिखाती है कि“असली शत्रु बाहर नहीं, भीतर है।”जो व्यक्ति अपने भीतर के क्रोध, भय और लोभ पर विजय पा लेता है, वह स्वयं भैरव बन जाता है। भैरव ने मनुष्यों को जाग्रत, निर्भीक और मुक्त होने की शिक्षा दी।
“जो भय को हर ले, वही भैरव है।”
“जो भीतर के अंधकार को जीत ले, वही मुक्त है।”
भैरवनाथ की साधना हमें बाहरी नहीं, आंतरिक शक्ति देती है -अज्ञान से ज्ञान की ओर, भय से निर्भयता की ओर, और मृत्यु के बंधन से शिवत्व की ओर।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक एवं अध्यात्म की जानकर हैं।)
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