बिहार विधानसभा चुनाव के लिए इन सीटों की हालांकि अभी इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है और आखिरी समय में थोड़े-बहुत बदलाव संभव हैं।
2020 से अब तक क्या बदला?
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2020 में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था और सबसे बड़ी एनडीए पार्टी बनकर उभरी थी।
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जेडीयू को अपेक्षाकृत कम सीटें मिलीं और चिराग पासवान की लोजपा ने अलग लड़कर उसे भारी नुकसान पहुंचाया।
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इस बार रणनीति साफ है—JDU और BJP दोनों ने अपनी सीटें घटाईं, ताकि सहयोगियों को जगह मिल सके।
चिराग पासवान की सबसे बड़ी वापसी
2020 में अलग राह चुनने वाले चिराग पासवान इस बार एनडीए में शामिल हैं। 40 सीटों की मांग थी, 20 मिलीं—फिर भी ये उनके लिए बड़ा राजनीतिक फायदा है। यह दलित और युवा वोटरों को साधने की कोशिश भी है।
छोटे दल, बड़ा असर
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HAM (मांझी): पिछली बार सीमित सीटों पर लड़े और बेहतर प्रदर्शन किया। इस बार 10 सीटें मिलीं।
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RLM (कुशवाहा): पहली बार NDA में जगह पाकर 10 सीटें मिलीं। यह ओबीसी समीकरण को मजबूत करेगा।
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VIP (मुकेश सहनी): पिछली बार 4 सीटें जीतने के बावजूद इस बार NDA से बाहर।
बड़ी तस्वीर
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JDU और BJP दोनों का त्याग—दोनों पार्टियों ने अपनी सीटें कम करके सहयोगियों को जगह दी है।
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LJP को साधना—2020 में ‘स्पॉइलर’ बनी LJP अब NDA का हिस्सा है, इससे अंदरूनी नुकसान से बचाव होगा।
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माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग—दलित और ओबीसी नेताओं को महत्व देकर एनडीए ने जमीनी स्तर पर संतुलन साधा है।
2020 में NDA और महागठबंधन के वोटों का फर्क बेहद मामूली था। ऐसे में 2025 की ये नई रणनीति बताती है कि एनडीए ने पिछले चुनाव से सबक लिया है।
इस बार चिराग पासवान की मौजूदगी और छोटे दलों को वज़न चुनावी मुकाबले को नया मोड़ दे सकते हैं।