चुनाव आयोग के ‘सर’ के खिलाफ विपक्ष का बिहार बंद, राहुल-तेजस्वी ने दिखाया दम

चुनाव आयोग की  मतदाता सूची पुनर्निरीक्षण (Special Intensive Revision) प्रक्रिया और पुराने दस्तावेजों को खारिज करने के फैसले के खिलाफ बुधवार को बिहार की सड़कों पर विपक्षी दलों के का्र्यकर्ताओं हुजूम उमड़ पड़ा। विपक्षी गठबंधन  के आह्वान पर आयोजित बिहार बंद में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की अगुवाई में एकजुट विपक्ष ने जबरदस्त शक्ति प्रदर्शन किया। बंद के दौरान पप्पू यादव, सीपीआई नेता डी राजा और भाकपा माले के दीपंकर भट्टाचार्य भी एकजुट दिखाई दिए।

Written By : महिमा चौधरी | Updated on: July 9, 2025 11:46 pm

बिहार बंद के दौरान प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। मोतिहारी में एनएच-27 ए पूरी तरह से जाम रहा। भागलपुर के लोहियापुर पुल पर चक्का जाम किया गया। दरभंगा में नमो भारत  और बिहार संपर्क क्रांति  जैसी प्रमुख ट्रेनें रोकी गईं। पटना में आयकर गोलंबर से निर्वाचन आयोग कार्यालय तक विशाल मार्च निकाला गया। वहीं, जहानाबाद में पटना पैसेंजर ट्रेन को रोका गया।

बिहार बंद और विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन का कारण चुनाव आयोग का नया निर्देश है जिसमें आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी जैसे पुराने मान्य दस्तावेजों को अमान्य घोषित कर दिया गया है। अब आयोग ने केवल 11  दस्तावेजों को ही वैध माना है, जिनमें से अधिकांश बिहार की गरीब और ग्रामीण जनता के पास उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर, बिहार में केवल 1.57 फीसद आबादी ही सरकारी नौकरी में है, जबकि पासपोर्ट 2023  तक केवल 2 फीसद लोगों के पास ही था। जन्म प्रमाण-पत्र की स्थिति भी चिंताजनक है, 2007  में केवल एक चौथाई नवजातों का ही जन्म प्रमाण-पत्र जारी किया गया था।

राहुल गांधी ने बंद के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, जैसे हरियाणा और महाराष्ट्र में वोट की चोरी हुई थी, वैसी ही चाल बिहार में चली जा रही है। सत्ता पक्ष को हमारी ताकत का अहसास हो गया है, इसलिए अब वोट के अधिकार को ही छीना जा रहा है।”   तेजस्वी यादव ने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया और कहा कि गरीबों और युवाओं का भविष्य ही वोट के रूप में छीना जा रहा है।

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग एक खुफिया रिपोर्ट और सर्वे के आधार पर जानबूझकर गरीब और प्रवासी मतदाताओं को सूची से बाहर कर रहा है क्योंकि भाजपा को हार का डर है। 2003  के बाद जो भी लोग वोटर लिस्ट में जुड़े हैं, उनकी वैधता अब संदेह के घेरे में आ गई है, ऐसे करीब 2.97  करोड़ लोग हैं जिनका नाम कट सकता है।

विपक्ष ने यह भी सवाल उठाया कि नागरिकता तय करना सरकार का कार्य है, न कि चुनाव आयोग का। आयोग का यह फैसला बिहार जैसे राज्य में और अधिक समस्याएं पैदा कर रहा है, जहां पहले से ही बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। बाहर रह रही आबादी के लिए आवश्यक दस्तावेज जुटाना लगभग असंभव है।

चुनाव आयोग ने अपने बचाव में Representation of the People Act, 1950  का हवाला दिया है, जिसके तहत उसे यह अधिकार प्राप्त है कि वह तय करे कि किसे वोटर लिस्ट में शामिल करना है। परंतु विपक्ष का कहना है कि मताधिकार एक संवैधानिक अधिकार है जिसे अनुच्छेद- 326  के तहत सुनिश्चित किया गया है, और आयोग का यह कदम उस अधिकार को छीनने की कोशिश है।

विपक्ष ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि आयोग ने पोलिंग बूथों की वीडियो फुटेज साझा नहीं की, जबकि यह उनका कानूनी अधिकार था। वहीं दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने संबंधित कानूनों में भी चुपचाप बदलाव कर दिया है जिससे चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं।

सत्ताधारी भाजपा और जदयू ने विपक्ष के इस विरोध को “बेबुनियाद” बताया है। उनका कहना है कि बिहार में सुशासन कायम है, रोजगार के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं और विपक्ष के पास कोई असली मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए जनता को गुमराह किया जा रहा है।

अब जबकि चुनाव आयोग 25  जुलाई तक वैध दस्तावेज मांग रहा है, ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और इस मुद्दे पर 10 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करेगा कि जो लोग निर्धारित तिथि तक वैध दस्तावेज नहीं जमा कर सके उन्हें वोट देने का अधिकार रहेगा या  नहीं।

ये भी देखें : –चुनाव आयोग का ‘सर’, विपक्षी दलों का दर्द और बिहार बंद

One thought on “चुनाव आयोग के ‘सर’ के खिलाफ विपक्ष का बिहार बंद, राहुल-तेजस्वी ने दिखाया दम

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