बिहार चुनाव : चिराग के बागी तेवर के क्या हैं मायने ?

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने राजग गठबंधन में रहते हुए ही बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। चिराग पासवान ने बिहार सरकार पर निशाना साधते हुए आज सवाल किया कि बिहारी अब और कितनी हत्याओं की भेंट चढ़ेंगे? यह समझ से परे है कि बिहार पुलिस की जिम्मेदारी क्या है?

Written By : रामनाथ राजेश | Updated on: July 13, 2025 1:57 am

उल्लेखनीय है कि चिराग पासवान को 11 जुलाई को जान से मार देने की धमकी मिली थी, जिसमें उन्हें 20 जुलाई से पहले बम धमाके में मार डालने की बात कही गई थी। इस धमकी को लेकर पटना में साइबर थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है। दूसरी तरफ बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने  बढ़ती अपराध घटनाओं को लेकर पुलिस की कमजोरी को स्वीकार किया है। साथ ही इसके लिए बालू-माफिया और शराब माफिया को दोषी बताया है। यहां उल्लेखनीय है कि चिराग पासवान बिहार में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार में जुटे हैं। वे विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर चुके हैं। यहां ये भी उल्लेखनीय है कि बिहार में चिराग एनडीए गठबंधन में बिहार में बड़ा दलित चेहरा हैं। हालांकि, जीतनराम मांझी भी दलित वर्ग हैं और उन्हें भी केंद्र सरकार ने मंत्री पद दे रखा है। चिराग के इस बागी तेवर से बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन की स्थिति असहज हो गई है। खासकर जब हर दिन कोई न कोई बड़ा अपराध हो रहा है।

चिराग के इस आक्रामक रुख पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी भी चुटकी ली है और कहा है कि ‘जाकर बोलिए कि बिहाार में जंगलराज आ गया है। ‘ चिराग के लिए महागठबंधन के लिए भी दरवाजे खुले हैं। चिराग पासवान (Chirag Paswan) के पिता रामविलास पासवान ने भी केंद्रीय मंत्री रहते पाला बदला था। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय रसायन और इस्पात मंत्री रहे रामविलास पासवान ने गुजरात दंगों को लेकर वर्ष 2002 में NDA को छोड़ दिया था और फिर वर्ष 2004 में कांग्रेस की अगुआई वाले UPA में शामिल होकर मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री बन गए थे। फिर 201314 में UPA छोड़कर NDA में शामिल  हुए थे और नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में मंत्री बने थे।

इस बात की चर्चा यहां इसलिए की जा रही है कि बिहार की दलित राजनीति में राजनीतिक विचारधारा या दलीय प्रतिबद्धता से मतदाताओं को बहुत फर्क नहीं पड़ता है, मतदाता सिर्फ अपने नेता पर फोकस रखते हैं। 13 करोड़ से अधिक की आबादी वाले बिहार में दलितों में दबंग दुसाध जाति के 5 फीसद से अधिक मतदाता हैं और दिवंगत नेता रामविलास पासवान इनके मान्य नेता थे। चिराग पासवान न तो भाजपा में हैं और न ही राजद में लोकसभा चुनाव में एनडीए ने उन्हें 5 सीटें दीं  तो सभी सीटों पर उनके उम्मीदवार जीते। ऐसा प्रदर्शन जदयू या बीजेपी दोनों में से किसी का नहीं रहा। निश्चित रूप से चिराग इसके आधार पर बिहार में अपने लिए ज्यादा सीटें चाहेंगे। वो खुद को एनडीए का मुख्यमंत्री पद के लिए दलित उम्मीदवार के रूप में पेश करना भी चाहेंगे लेकिन भाजपा और जदयू में से कोई इसके लिए तैयार नहीं है। यदि महागठबंधन में शामिल होते हैं तब भी राजद या कांग्रेस को यह स्वीकार नहीं होगा। ये जरूर हो सकता है कि बिहार में उन्हें नंबर दो की कुर्सी मिल जाए लेकिन केंद्रीय मंत्री का पद बिहार के उपमुख्यमंत्री से ज्यादा बड़ा है।

ऐसी स्थिति में चुनावी माहौल को भांपने के बाद ही चिराग ये तय करना चाहेंगे कि किधर का रुख किया जाए। पहले तो ये जरूरी है कि अपने पिछले दोनों लोकसभा चुनावों की 100 फीसद सफलता के आधार पर  मौजूदा NDA गठबंधन से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की कोशिश करें। इसके लिए बागी तेवर दिखाना भी जरूरी है। चिराग अपने वोटबैंक के लिए नीतीश सरकार पर निशाना साध रहे हैं, जो दबाव की राजनीति के लिए जरूरी है। उनका ये रुख बिहार की सत्ता में शामिल बिहार बीजेपी के लिए भी अंदर खाने अच्छा लग रहा है।

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