तेजस्वी प्रण नाम से जारी इस घोषणापत्र में मुख्य रूप से रोजगार, किसानों, महिलाओं और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में बड़े वादे किए गए हैं। महागठबंधन ने इसे “नए बिहार के निर्माण का रोडमैप” बताया।
घोषणापत्र के प्रमुख बिंदु
बताया जा रहा है कि बिहार सरकार का सालाना बजट कुल 3 लाख 16 हजार करोड़ रुपये का है जबकि इन वादों को पूरा करने के लिए बजट को 10 लाख करोड़ रुपय करने की जरूरत होगी. ऐसी स्थिति में इन वादों को पूरी करे के लिए ये रुपये कहां से आएँगे इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं की गई है। इसीलिए विपक्षी नेताओं नेघोषणापत्र जारी होते ही एनडीए नेताओं ने इसे “लोकलुभावन और अव्यावहारिक वादों का पुलिंदा” करार दिया।
लोजपा आर नेता चिराग पासवान ने कहा:
“झूठ बोलने में क्या जाता है — जो जानते हैं कि सत्ता में नहीं आने वाले, वे बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। लोगों ने कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाया, फिर खुद को जननायक कहने का हक कैसे ?”
उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा:
“महागठबंधन के भीतर भ्रम और आंतरिक कलह है। उनके पास न कोई स्पष्ट रणनीति है और न नेतृत्व। उन्हें बताना चाहिए कि इन योजनाओं के लिए पैसे कहां से आएंगे, क्या बजट लगेगा,किन चीजों से पूरा करेंगे?’
केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने कहा :
‘तेजस्वी यादव बिहार की जनता को सिर्फ सपने बेचने की कोशिश कर रहे हैं।’
विश्लेषकों का कहना है कि महागठबंधन का घोषणापत्र युवाओं, किसानों और महिलाओं को केन्द्र में रखकर सत्ता परिवर्तन और विकास एजेंडा पेश करने की कोशिश है, जबकि एनडीए इसे अवास्तविक वादों का दस्तावेज़ बता रहा है।
राजनीतिक मायने
घोषणापत्र के बाद बिहार की चुनावी राजनीति एक नया मोड़ ले चुकी है। महागठबंधन ने बड़े वादों और सामाजिक न्याय के एजेंडे को लेकर जनता का ध्यान खींचा है। वहीं विरोधी दलों ने इन वादों की व्यावहारिकता और वित्तीय बजट-संगतता पर प्रश्न उठाए हैं। आने वाले हफ्तों में ये घोषणाएँ और उनके निहित परिणाम चुनावी बहस का केंद्र बनेंगे।
मंच पर मौजूद नेताओं की उपस्थिति और घोषणापत्र के बिंदु यह दर्शाते हैं कि महागठबंधन की योजना राज्य में बदलाव और विकास के लिए एक ठोस रोडमैप पेश करने की है, जबकि एनडीए की प्रतिक्रिया इसे चुनौतिपूर्ण और अवास्तविक बताती है।
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