इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई (एम), सीपीआई, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन, एनसीपी (शरदचंद्र पवार) और समाजवादी पार्टी के नेता प्रमुख रूप से शामिल थे। ये नेता चुनाव आयोग के बिहार में मतदाता सूची संशोधन के फैसले से नाराज हैं। वे “Special Intensive Revision (SIR)” नामक विशेष मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया से पूरी तरह असहमत हैं। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया बिहार विधानसभा चुनावों से पहले गरीब, दलित अल्पसंख्यक और प्रवासी मजदूरों को उनके वोट देने का अधिकार छीन लेने की साजिश है। इन दलों का मानना है कि ये इसे NRC की तरह है। ये लोकतंत्र और संविधान पर “सबसे बड़ा हमला” है।
विपक्षी दलों की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह ये रही कि चुनाव आयोग ने सभी नेताओं को बातचीत के लिए आने ही नहीं दिया। आयोग ने प्रत्येक दल के केवल दो-प्रतिनिधि को बैठक में आने की अनुमति दी। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी के अनुसार इस वजह से जयराम रमेश, पवन खेड़ा और अखिलेश सिंह जैसे उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को बाहर ही रहना पड़ा। प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ 3 घंटे बिहार चुनाव पर चर्चा की लेकिन असहमति बनी रही। विपक्षी नेताओं का कहना है कि SIR के तरह केवल 25 दिनों में बिहार के 8 करोड़ मतदाताओं की सूची का सत्यापन करना मानसून और बाढ़ के मौसम में व्यावहारिक नहीं है। चुनाव आयोग का कहना है कि वह केवल मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना चाहता है। विपक्ष का कहना है कि जाति प्रमाण पत्र, अभिभावकों का विवरण सहित 11 तरह के कागजात मांगे गए हैं जिन्हें जुटाना मुश्किल है। ये गरीबों के “मताधिकार की डकैती” है।
विवाद का मूल कारण SIR की समय-सीमा, दस्तावेजी बाध्यताएँ, प्रवासी मतदाताओं की अनदेखी है। चुनाव आयोग इस प्रक्रिया वैधानिक और जरूरी मान रहा है जबकि विपक्ष इसे निष्पक्ष माताधिकार से वंचित करने की कोशिश बता रहा है।
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