पूरी दुनिया में लाखों लोगों की जीवन गाथा लिखी गयी है हज़ारों लोगों ने अपनी आत्मकथा भी लिखी है पर बहुत कम आत्मकथा ऐसी बन पाती है कि लोग उसे बार बार पढ़ना चाहें .बहुत बार आत्मकथा भाषा साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन जाती है .हिंदी में प्रतिष्ठित कवि हरिवंश राय बच्चन की चार खण्डों में लिखित आत्मकथा एक ऐसी ही साहित्यिक कृति है.
अवस्थाओं को जीवंत शब्दों में उकेरने की कोशिश
जनवरी 2024 में ‘राधाकृष्ण प्रकाशन’ से एक नए मिज़ाज़ की आत्मकथा आई है’बोरसी भर आंच-अतीत का सैरगाह’.चर्चित युवा कवि और लेखक यतीश कुमार की ये आत्मकथा अब तक हिंदी में लिखी गयी आत्मकथाओं से भिन्न है क्योंकि इसमें बड़े ‘प्रतिष्ठित और वयोवृद्ध’होने का बोझ भी नहीं है. यतीश कुमार रेलवे के एक वरिष्ठ इंजीनियर हैं और अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं.उन्होंने इस आत्मकथा में अपने बाल्यावस्था ,किशोरावस्था और युवावस्था को जीवंत शब्दों के माध्यम से दिखाने की कोशिश की है जो बहुत ही रोचक और कौतूहल भरा है. इस पुस्तक के बारे में प्रसिद्ध लेखक उदय प्रकाश जी लिखते हैं,”यतीश कुमार ने अपने बचपन और अतीत में जाने के लिये जिस ‘युक्ति’ का आविष्कार किया है, उसे वे ‘अतीत के सैरबीन ‘का नाम देते हैं”. पुस्तक का मुखपृष्ठ बहुत आकर्षक है और एक नयापन लिये हुए है. पुस्तक सिर्फ पठनीय ही नहीं,संग्रहणीय भी है और यह साबित करती है कि सामान्य मनुष्य के विशिष्ठ बनने का रास्ता कैसा होता है !
बेबाकी से सामने रखा है अपनी गलतियों को
अति चित्रात्मक ढंग से लिखी गयी इस आत्मकथा में लेखक यतीश ने अपनी कमजोरियों, नादानियों, खामियों और बालपन की गलतियों को जिस बेवाकी से सामने रखा है वह कोई बहुत ईमानदार व्यक्ति ही कह सकता है. अपनी दिदिया के साथ बिताए क्षणों को जिस ढंग से यतीश ने लिखा है कि किसी के आंखों में आंसू आ जाय! इस पुस्तक को पढ़ते हुए कभी कभी दोस्तोवस्की की ‘द इडियट’ की याद आती है ।
( पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)