कवि चन्द्रमोहन की कविताएं कल्पनालोक में बैठकर लिखी हुई कविताएं नहीं हैं .इनकी कविताएं धरातल पर घटने वाली सच्चाइयों की कविताएं हैं . कवि कि इन कविताओं में जमीनी सच्चाई है, तड़प है और हताशा भी है.
“मेरी मां मछली
पकड़ती हैं
और मैं
भूख पर कविताएं लिखता हूँ, नदी किनारे ।
मेरी मां
मछली पकड़ती है
और मैं
बकरियों को चराता हूँ।
मेरी मां मछली पकड़ती है और मैं
बंसी,जाल ,काठ की नाव
बनाने के बारे में सोचता हूँ।
और आप
आप क्या पकड़ते हैं
मछली.. सांप..गोद.. कीड़े.. नदी.. बालू
या मजदूर आदमी।” (मैं और मेरी माँ, पृष्ठ संख्या 61)
सौ पृष्ठ की इस कविता संग्रह में पचपन कविताएं हैं. चंद्रमोहन चिंतित हैं प्रकृति के विनाश से, दोहन से.
“कार्बी आंगलांग का ऐसा / कोई पत्थर का पहाड़ बताओ/जो खरीदा न गया हो/ऐसे जंगल जो जमीन के लिए /बिल्डर के लिए/धीरे धीरे कटते हुए/बड़ी गाड़ियों में न जा रहे रहे हों/ असम की/कपिली जैसी सुंदर नदी बताओ/जिसकी रेत ट्रकों में भर भर कर न जा रही हो / यह जाने का समय है/जो कुछ जस तस बचा खुचा/सब जाने को तैयार है।” (यह जाने का समय है,पृष्ठ संख्या44)
संग्रह के प्रारंभ में चंद्रमोहन इस पुस्तक को समर्पित करते हैं “दुनिया के तमाम श्रमिकों के लिए “! कविता संग्रह के प्रस्तावना में कुमार मुकुल ने कवि सुदीप बनर्जी को उद्धृत किया है : ” …उतना कवि/ तो कोई नहीं /जितनी व्यापक दुनिया/जितने अंतर्मन के प्रसंग ” .
कुमार मुकुल आगे लिखते हैं ‘कवि चन्द्रमोहन की कविताएं पढ़ते हुए यह कहने का मन होता है कि उतना कवि तो कोई नहीं जितना कि चंद्र’ . कवि की भाषा सहज और सुंदर है . हाल में ही इस संग्रह के लिये कवि चंद्रमोहन को प्रातिष्ठित राष्ट्रीय ‘कृत्या पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है. संग्रह पठनीय, संग्रहणीय और भेंट देने योग्य है!
कविता संग्रह: फूलों की नागरिकता
कवि:चंद्रमोहन ,पृष्ठ संख्या :100
प्रकाशक: न्यू वर्ल्डपब्लिकेशन ,मूल्य:रु 225.
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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