इस काव्य संग्रह की कविताओं के कुछ शीर्षक देखिये तो स्वतः आपको कविताओं की तासीर भी समझ में आ जायेगी. शीर्षक हैं 1.देगची2.मुटरा मुंडा तुम ज़िंदा हो 3.विचार 4.फूल 5.मेरे दोस्त 6.चिरैयाँ7.जंजीरें 8.छापामार कविताएं 9.रोशनी 10.गुंटरू 11.प्रेम-पत्र12.इतिहास के खुरदुरे पांव13. कचरा काका 14.मंत्री जी 15.भट्ठी 16.उलगुलान के गीत 17.वाह जी वाह 18.अगर वाह 19.बदलाव 20.बचाना है 21.आज भी 22. रहने दो 23.सवाल करें 24. टूटी हुई छान 25.जंगल माफिया 26. चकोड़ साग 27. चस्में का डब्बा 28. टंडवा 29.समय 30.सपने 31.बेरोजगारी 32.इन्क़िलाब की हवा 33.उलगुलान.
“सूक्ष्मदर्शी यंत्र से कर लो तुम/ परीक्षण -दर -परीक्षण /मेरे दिल के धड़कनों के छिद्रों को/हर छिद्र में होंगे/उलगुलान के गीत/संघर्ष और विद्रोह के गीत/अमन और चैन के गीत ” ( उलगुलान के गीत, पृष्ठ -50) पूरे देश में गावों और जंगलों के निवासियों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें उस क्षेत्र से बेदखल किया जा रहा है जहां सैकड़ों सालों से लोग रहते आये हैं .कुछ बड़े व्यवसायी (जंगल माफिया) आते है, बड़े औजारों ,हथियारों के साथ और जंगल से लकड़ियां काटकर, जंगल उजाड़कर और जंगल की धरती चीरकर ,खुदाई कर बहुत कुछ ले जाते हैं.
एक वनवासी ठगा सा महसूस करता है .उसे समझ में नहीं आता कि पुश्तों से जिस जमीन को वह अपनी माँ मानता है उसके बारे में कोई इस निर्दयता पूर्वक कैसे सोच सकता है, निर्णय ले सकता है? इस संग्रह के लगभग सभी कविताओं में यह भाव अंतर्निहित है. भारत ही नहीं, विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में विस्थापन और पूंजीवादी (विकासवादी) शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष अपने अपने ढंग से सदियों से चल रहा है. दुनिया भर के कवियों, लोकगीतों में यह व्यथा कथा बार बार देखने -सुनने को मिलती है पर यह सिलसिला अंत होने का नाम नहीं लेता और एक और संघर्ष प्रारंभ हो जाता है. काव्य संग्रह इस जीवन संघर्ष पर एक नई दृष्टि देता है. इस पुस्तक को पढ़ा जाना चाहिए. संग्रहणीय भी है.
पृष्ठ-80
प्रकाशन: प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन,रांची
मूल्य -125 रुपये
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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