Book Review : बीसवीं सदी के पूर्व भारत के जनजातीय क्षेत्रों की असंख्य ज्ञान की बातें, उनके संस्कार, संगीत,लोककथा,लोककला और पारंपरिक प्राकृतिक विज्ञान व्यवहार से दुनिया अनभिज्ञ थी. बड़ी तन्मयता पूर्वक बहुत से यूरोप से आए शोधकर्ताओं ने अंग्रेज़ी में उसे लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया. बाद में उसका अनुवाद हिंदी में (देवनागरी लिपि) में होना प्रारंभ हुआ पर इतना तो तय है कि बाहरी लोगों द्वारा लिखी बातों में तथ्य यथार्थ से दूर रहा.
आज़ादी के बाद शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ-साथ लेखन के स्तर में भी सुधार आया. यहां यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि भारत में हज़ारों सालों तक संस्कृत और उसके बाद फ़ारसी-उर्दू शिक्षा के समय भी भारतीय जन जातीय समाज बहुत दूर रहा. यूरोपीय लोगों ने मिशनरी के माध्यम से धर्म परिवर्तन के लिए ही पूरे भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के माध्यम से पूरे भारत के जनजातीय क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाई. पुराने छोटानागपुर और बर्तमान झारखंड राज्य में भी ऐसा ही हुआ. बीसवीं सदी में आकर बड़ी संख्या में यहां के जन- जातीय लोगों ने आधुनिक उच्च शिक्षा प्राप्त की और अपनी और अपनों की बात हिंदी, अंग्रेज़ी में लिखने लगे. अब तो बहुत सारी झारखंडी भाषा के लोगों ने अपनी लिपि भी विकसित की है. हां हिंदी में यहां के लेखक, लेखिकाओं ,विद्वानों, शोद्धकर्ताओं में प्रशंसनीय वृद्धि हुई है.
आज चर्चा होगी कथा संग्रह ‘पगहा जोरी-जोरी रे घाटो’ की. इसकी लेखिका हैं झारखंड की निवासी उच्च शिक्षा प्राप्त वयोवृद्ध महिला रोज केरकेट्टा. रोज जी लगभग पिछले पचास सालों से लिखती आ रही हैं ,पत्रिकाएं संपादित करती आ रही हैं. झारखंड के परिदृश्य को जानने समझने के लिये रोज जी की कथा ,कहानियां, उपन्यास एक अति आवश्यक मार्ग है.
Book Review में जैसे ऊपर चर्चा हो चुकी है कि झारखंड की पृष्ठभूमि पर महाश्वेता देवी से लेकर सैकड़ों लोगों ने लिखा पर रोज जी की कथाओं में जो एक आंतरिक स्पंदन है वह औरों में नहीं मिलती. ‘पगहा जोरी जोरी रे घाटो’ में कुल सोलह कथाएं हैं :1.भंवर2.घाना लोहार का 3.केराबांझी 4.कोंपलों को रहने दो 5.छोटी बहू6.गंध 7.आँचल का टुकड़ा 8.भाग्य9.बाही 10.से महुआ गिरे सगर राति 11.लत जो छूट गयी 12.मैना 13.संगीत प्रेम ने प्राण लिए 14.बीत गयी सो बात गयी 15.दुनिया रंग रंगीली बाबा 16.पगहा जोरी जोरी रे घाटो. ”
…….चरवाहे बच्चों ने आवाज़ सुनी। एकाएक वे चिल्लाने लगे-‘पगहा जोरी जोरी रे।घाटो संखो किनारे, कोइलो किनारे ,कोइलो किनारे उतरेले घा टो ‘ बार- बार बच्चे दुहरा रहे थे। कुछ बच्चे चिल्लाते हुए दौड़ -दौड़ कर घासों की सात गेन्ठ लगाने की कोशिश करते रहे। एक सांस में सात गेन्ठ लगाना था न। तभी तो घाटो वहां आकाश में चक्कर काटेंगे। नहीं तो वे उड़कर दूर चले जाएंगे।”
अंतिम कहानी के इस अंश से अंदाज लगाया जा सकता है कि कितनी रोचक होंगी! 145 पृष्ठ की इस कथा संग्रह की सभी कहानियां रोचक, आकर्षक और पठनीय हैं. अगर आप झारखंड के जनजीवन में रुचि रखते हैं तो रोज़ केरकेट्टा जी के इस संग्रह को अवश्य पढ़ें. सरल हिंदी में लिखी कहानियों में स्थानीय शब्दों का प्रयोग इसे और भी अकर्षक बना देता है.
कृति: पगहा जोरी जोरी रे घाटो (कथा संग्रह), पृष्ठ:145 , मूल्य-रु.150 प्रकाशक:देशज प्रकाशन, पीस रोड, लालपुर, रांची
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(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)