किताब का हिसाब : पढ़ें, नीरज नीर की ढुकनी एवं अन्य कहानियाँ

इस बार पुस्तक चर्चा में हिंदी के उदीयमान कथाकार,कवि, लेखक नीरज नीर के कथा संग्रह की थोड़ी चर्चा होगी. लगभग 160 पृष्ठों के इस संग्रह में चौदह कहानियां हैं.

Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: November 27, 2024 8:33 pm

पुस्तक समीक्षा: कहानियों के शीर्षक से ही ये आभास हो जाता है कि भारत के इस भूभाग के लोगों की कहानियां हैं ये .देखिये शीर्षक :1.कोयला चोर 2.सभ्यता के अंधेरे 3.दिल्ली का धोबी 4.कौन ठगवा नगरिया लूट ले हो रामा 5.पिंजरे के पंछी 6.दलितों का देवता 7.शोक 8.ढुकनी 9.सेंवइयाँ 10.मजनूँ का टीला 11.प्रतिष्ठा 12.मियाँ मिसिर 13.यात्रा 14.कहीं तो होगा ऐसा देश.

“नीरज नीर ने कुछ ही समयावधि में एक संभावनाशील कथाकार के रूप में अपनी पहचान बना ली है ….” पंकज मित्र, सुप्रसिद्ध कथाकार. इस संग्रह के माध्यम से कथाकार नीरज ने मानव जीवन के संघर्ष को आम ग्रामीण लोगों की व्यथा कथा का वर्णन किया है. हालांकि इसका भौगौलिक क्षेत्र भले है झारखंड हो पर ये व्यथा कथा पूरे हिंदी प्रदेश की है.

नीरज नीर संग्रह के प्रारंभ में “अपनी बात'”में कहते हैं ….”इन कहानियों में आप पाएंगे कि ये कहानियाँ यथार्थ के कठोर धरातल पर उपजी हैं इनके एवं इनके पात्र समाज की विसंगतियों एवं विडंबनाओं के नेपथ्य से ही बाहर आए हैं. मैंने अपने आस पास के परिवेश में जो देखा सुना अनुभव किया, वही इन कहानियों की प्रेरणा बने हैं. ये कहानियां आपको अपनी मिट्टी की सुगंध लिये हुई मिलेंगी ऐसा मेरा विश्वास है.”

कथाकार नीरज नीर की भाषा सरल और प्रवाहमान है. इन्होंने देशज शब्दों का इस्तेमाल कर कथाओं को एक विशेष आकर्षण प्रदान की है. इस क्षेत्र के ग्रामीणों का संघर्ष ,अस्तित्व की लड़ाई,पलायन की व्यथा, विस्थापन का दर्द और परिस्थितिवश टूटते -बिखरते मानवीय संबंधों के विघटन की वेदना ये सब मिलेगा नीर की कहानियों में. कभी कभी ऐसा लगता है कि लेखक ने कहानियों को थोड़ी जल्दी समेट लिया है. इन में कई कहानियों को थोड़ा विस्तार दिया जा सकता था.

पुस्तक समीक्षा में एक कथा के अंश को देखिए “साइकिल लार चढ़कर फुरसत के पलों में जब वह निकलता ,तो उसे लगता कि वह हवाई जहाज पर उड़ रहा है, उसकी बेड़ियाँ एक एक कर टूट रही हैं और वह आज़ाद परिंदे के मानिंद नीले आसमान में उड़ान भरने के लिये स्वतंत्र है।उसे लगता ,मानो उसका पुनर्जन्म हुआ हो।

वह एक नया आदमी है, जिसकी अपनी पहचान है, इज्जत है जो अपनी इच्छा से जीना चाहता है।….”

(पृष्ठ154, कहीं तो होगा ऐसा देश)

प्रकाशन: प्रभात प्रकाशन, मूल्य-रु 300.

(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)

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