किताब का हिसाब: रीता गुप्ता के संग्रह ‘साँझ ढले गगन तले’ में पढ़ें 14 कहानियां

'साँझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी। छोड़ चले नयनों को किरणों के पाखी।।' (-वसंत देव ) ये पंक्तियां कथा लेखिका रीता गुप्ता ने अपने नवीनतम कथा संग्रह (Story Collection)"साँझ ढले गगन तले " के प्रारंभ में अपने सह- जीवनयात्री को स्मरण करने से पूर्व उद्धृत किया है. पिछले दिनों वनिका पब्लिकेशन्स से 128 पृष्ठ के इस कथा संग्रह में 14 कहानियां हैं.

कहानी संग्रह के आवरण का अंश
Written By : प्रमोद कुमार झा | Updated on: November 4, 2024 10:21 pm

कथा लेखिका रीता गुप्ता कई दशकों से कहानियाँ लिख रही हैं और पत्र पत्रिकाओं में सुपरिचित नाम है .रीता जी का यह दूसरा कहानी संग्रह है.

‘मैं आम पाठकों की लेखिका हूँ. इस संग्रह (Story Collection) को प्रकाशित करवाने का मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ अपने पाठकों का मनोरंजन है’ संग्रह के प्रारंभ में रीता जी ने यह उद्गार व्यक्त किया है. असल में रीता जी की कहानियाँ बीसवीं सदी के अंतिम तीन दशक और नई सदी के पिछले दो दशकों में निम्न मध्य वर्ग और विकासशील मध्यवर्ग के अंतर्द्वंद्व की कहानियां हैं. इन्होंने एक कुशल सिनेमेटोग्राफर की तरह अपने जीवन में चारों तरफ की घटनाओं को मानस पटल पर रिकॉर्ड किया और फिर बढ़िया से एडिट कर, पिरोकर उसे कहानी का रूप दिया है.

कहानियों में अनेक स्थान पर ‘लांग शॉट’के साथ साथ ‘क्लोज अप’ का भी सफलता पूर्वक उपयोग कथाकार ने किया है. कथाओं में पूरे भारत के विभिन्न क्षेत्र से कोयला खदानों में आए लोगों की अलग संस्कृति और संस्कार की भी झलक मिलती है. कई कहानियां तो अखबार में छपी खबर की भी याद दिलाती है. मध्य वर्ग में बच्चों को अमेरिका भेजने की लालसा और फिर उसके दुष्परिणाम को भी कई कहानियों में दिखाया गया है.

बहुत सारे प्रौढ़ और बुजुर्ग पुरुष और महिला को तो बिल्कुल अपनी ही कहानी लगेगी !रीता जी की कहानियां में कृत्रिम बौद्धिकता,सैद्धांतिक उपदेशात्मक उक्तियों और आदर्शवाद से परहेज़ है .ये कहानियां रेखाचित्र की तरह हैं.और प्रायः यही कारण है कि पाठक तुरंत अपने को ‘आइडेंटिफाय’ करने लगते हैं. ये कहानियां पाठकों को ‘उनकी नहीं अपनी कहानी लगती है .कहीं कहीं रीताजी को पढ़ते हुए शिवानी की कहानियां याद आती हैं.

‘खोई खोई सी बहारें’ संग्रह की पहली कहानी एक बुजुर्ग अवकाशप्राप्त दंपति की कथा है. इस कथा की कुछ पंक्तियों को देखिए “…अब उसकी बातों में बेचारा बेटा होता, शैतान बहू होती, लालची पोता होता, पीटने वाला पति होता. पट आंटी की दिनचर्या में ये सभी नदारत थे……….” .संग्रह की अन्य कहानियां अमेरिका-अमेरिका, द गेम शो, तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार, कोयला भई न राख, बोनसाई का जंगल, शुरू से शुरू करते हैं, मिसेस मूर्ति का जाना, इमोशनल अत्याचार, डायन, स्मृतियों का भ्रमजाल, और बर्गर ठंढा होता रहा, देर से ही और सम्राट का बेटा प्रिंस हैं.

कथा संग्रह( Story Collection) की अधिकांश कहानियां बढ़ते उम्र की बेबसी की कहानी है ,महत्वकांक्षा से उत्पन्न निराशा की कहानी है …हमारी आपकी कहानी है! “बच्चों को कभी अमेरिका मत भेजना”,अमेरिका अमेरिका कहानी का नायक जीवन भर अमेरिका का गुणगान करता रहा पर बच्चों को अमेरिका भेज और वहां स्थायी रूप से बस जाने पर अकेलेपन से विक्षिप्त सा हो गया और सबको अनावश्यक बच्चों को अमेरिका नहीं भेजने की सलाह देता फिरता है. सभी कहानियां पठनीय हैं। कहानियों में तद्भव शब्दों का अधिक प्रयोग कहीं कहीं अप्रिय लगता है.

(पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)

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