सारिका निरंतर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों और ऑन लाइन गोष्ठियों में भाग लेती रहती हैं .इसी निरंतरता के फलस्वरूप सारिका की लेखनी भी उत्तरोत्तर अधिक गंभीर होती जा रही है. मौन को मुखर होने दो संग्रह में छोटी छोटी 101 कविताएं हैं . कविताओं के कुछ शीर्षक को देखें : “1.मौन को मुखर होने दो 2. जुगाड़ 3.पापा की पोटली 4.देखो आया बसंत 5.हनुमान चुटकी 6.समानता 7.कंक्रीट 8.चुप्पी का टूटना 9.प्यास 10.डायन 11.हुस्न 12. स्वतंत्रता 13.मेरा गांव 14.जन्म-मृत्यु 15. त्रिदेब 16.धब्बे 17.चींटियों के पर इत्यादि .
सारिका ने दैनिक जीवन के प्रत्येक कदम पर कविता ढूंढने का प्रयास किया है . प्रायः इसीलिए इनके शब्द और भाव भी बहुत सरल हैं . कवयित्री के शब्द प्रतिदिन उपयोग में आनेवाले बातचीत की भाषा से ली गयी हैं. इस संग्रह में सारिका की कुछ कविताओं को देखिये: ‘निःशब्द *** हवा का एक तेज़ झोंका/और गिर जाता है घोंसला/ बिखर जाते हैं तिनके /ठीक उसी तरह/जिस तरह तुम्हारी बातों से/मेरा दिल/ टूटकर बिखर जाया करता है/फिर मैं नन्हीं चिड़िया को देखती हूँ/एक- एक तिनके को जोड़ते हुए/अपने बच्चों की खातिर/अपने अस्तित्व की खातिर /उसकी जद्दोजहद को/ और तब मैं भी / खुद के टुकड़ों को जोड़कर/तुम्हारे सामने आती हूँ/एक बार नहीं/बार-बार/अपने नीड़ के निर्माण /और अस्तित्व के खतिर/और फिर से/निःशब्द हो जाती है / कायनात .’ (पृष्ठ-22)
“पलामू किला ****** ……………..सुना है/ राजा के थे अत्याचार/प्रजा प्रमुख की/जिसने की यही अवहेलना/स्त्रियों के कुछ शाप थे/ कि फट गई थी/छाती माँओं की/फिर बनती कैसे यह/धरोहर दुआओं की.” (पलामू किला) कवयित्री स्वाभाविक रूप से प्रकृति के समीप जाना चाहती है पर आधुनिक जीवन और जीवनशैली से उत्पन्न परिस्थियों में असहाय भी महसूस करती हैं . समकालीन हिंदी कवि- कवियित्रियों की तरह इनकी कविताओं में भी प्रकृति का विनाश और आधुनिकता के छद्म में कृत्रिमता के दुष्प्रभाव के प्रति वितृष्णा दिखाई पड़ती है . संग्रह पठनीय है. छपाई सुंदर है. मुखपृष्ठ पर अनुप्रिया की सुंदर पेंटिंग आकर्षित करती है. सारिका पारिवारिक संबंधों पिता-पुत्री स्नेह , स्त्रियों की पीड़ा और सामाजिक कुरीतियों जैसी बातों की ओर भी अपनी कविताओं में इशारा करती हैं.
पुस्तक: मौन को मुखर होने दो
कवयित्री: सारिका भूषण, पृष्ठ:144 , प्रकाशक: सृजनलोक प्रकाशन, नई दिल्ली , मूल्य:रु 250
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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