127 पृष्ठ के इस संग्रह में अधिकांश कविताएं छोटी हैं पर महत्वपूर्ण हैं. समकालीन हिंदी कवियों में विनोद कुमार शुक्ल बहुत प्रातिष्ठित और वरिष्ठ कवि हैं. इस वर्ष (2024) सम्मानित ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी विनोद कुमार शुक्ल जी को सम्मानित किया गया है . उनकी एक कविता देखिये:
‘ अंतिम चीता मरा ————————– अंतिम चीता मरा/और चीता की जाति समाप्त हो गयी मनुष्य से/ चीता शब्द है, पर चीता नहीं / चीते के चित्र और घटनाएं , कहानियों में है मनुष्यों में। पृथ्वी से क्या कुछ नष्ट नहीं हो गया होगा/और वह सब कुछ है/ जिससे नष्ट हो जाएगी पृथ्वी, पृथ्वी शब्द,/ पृथ्वी चित्र, पृथ्वी घटनाएँ, पृथ्वी कहानियाँ/ मनुष्य चित्र ,मानुष कथा। छुपाकर रख देना चाहिए/ इस अमावस की आदिम गुफा में/ स्त्री-पुरुष का प्रेम सहवास।” (पृष्ठ 49) विनोद कुमार शुक्ल जी जीवन के कवि हैं, जीवन के यथार्थों के कवि हैं और इंसानियत की मूल भावनाओं के कवि हैं.
उनकी सारी की सारी कविताएं सामान्य जीवन की सच्चाइयों से जुड़ी हैं.विनोद ही कल्पना लोक में रहने वाले नहीं इसी पृथ्वी पर मर्त्यलोक में रहने और जीने वाले कवि हैं. उनकी कुछ कविताओं के शीर्षक देखिये तो आपको स्वयं ही उनकी सोच और कवि -दृष्टि का पता चल जाएगा ! मैं अदना आदमी,यह चेतावनी है, एक विशाल चट्टान के ऊपर,कितना बहुत है,जमीन पर बैठा पक्षी, वृक्ष की सूखी, बिन डूबी धरती,एक सूखी नदी, दो आम के पेड़ इत्यादि. विनोद जी की कविता के विषय प्रकृति, जीवन और जीवन की सच्चाई है.
कवि इस बात से काफी भयाक्रांत है कि मनुष्य की महत्वाकांक्षा और लोभ कहीं इसका और प्रकृति का अस्तित्व ही न मिटा दे. इसलिए शुक्ल जी जीवन के कवि हैं. संग्रह अति पठनीय और संग्रहणीय है . पुस्तक की छपाई सुंदर है।
. पुस्तक:कवि ने कहा- चुनी हुई कविताए, पृष्ठ :127
कवि :विनोद कुमार शुल्क.
प्रकाशक: किताबघर मूल्य:रु.200, प्रकाशन वर्ष -2024.
(प्रमोद कुमार झा तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी और दूरदर्शन के वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे. एक चर्चित अनुवादक और हिन्दी, अंग्रेजी, मैथिली के लेखक, आलोचक और कला-संस्कृति-साहित्य पर स्तंभकार हैं।)
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