यूं तो झारखंड स्थापना (establishment of Jharkhand) के तेईस वर्ष गुज़र गए पर इस क्षेत्र के समुचित विकास के लिए मांग आज़ादी के बहुत पहले से ही उठती रही है.अब तो यह बात भी सामने आ रही है कि उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध का ‘हुल विद्रोह’ पहला स्वतंत्रता केलिए विद्रोह था जो 1857 के सिपाही विद्रोह से भी पहले हुआ था। झारखंड क्षेत्र में आज़ादी की लड़ाई बहुत मुखर थी पर सैकड़ों सालों से इस क्षेत्र के महत्व को लगातार नकारा गया. रांची के प्रतिष्ठित वयोवृद्ध लेखक,कवि साहित्यकार विद्याभूषण जी पिछले छह दशक से अधिक समय से इस क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन, आंदोलन, राजनीतिक उथल पुथल और जनजातीय समाज के शोषण के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं. उन्होंने लगभग दो दर्जन पुस्तकें लिखी हैं।
रांची में हुआ पुस्तक का विमोचन
‘बदलाव के तिराहे पर खड़ा झारखंड’ इनकी नवीनतम पुस्तक है.इस पुस्तक का लोकार्पण पिछले 21अप्रैल को रांची में किया गया.इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता विनोद कुमार,चर्चित लेखक राकेश कुमार सिंह, प्रसिद्ध पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा, प्रसिद्ध विद्वान महादेव टोप्पो (अध्यक्ष ) के साथ साथ शहर के गण्यमान व्यक्ति उपस्थित थे। सभी वक्ताओं ने अपने अपने दृष्टिकोण से पुस्तक का परिचय कराया. लेखक स्वयं भी इस अवसर पर इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया से लोगों का परिचय कराया।
झारखंड को जानने और समझने के लिए उपयोगी
यह पुस्तक झारखंड को जानने और समझने के लिये एक उपयोगी पुस्तक साबित होगी।इसमें झारखंड के इतिहास, भूगोल,लोगों की मनोदशा,औद्योगिक विकास और उससे उत्पन्न विस्थापन पर गंभीर चर्चा है. झारखण्ड क्षेत्र सैकड़ों सालों से खनिज पदार्थों, कोयला और मानव श्रम के लिए साम्राज्वादी शक्तियों को आकर्षित करता रहा है. यहाँ के कर्मठ जनजातीय लोगों को अंडमान निकोबार के जंगलों को साफ़ करने के लिए ले जाया गया, उत्तर पूर्व के चाय बागानों की आर्थिक सफलता भी इन मेहनतकश लोगों के कारण ही हुआ है!जनजातीय समुदाय के सिकुड़ते भौगोलिक क्षेत्र,उसके कारणों और उनके अस्तित्व के सम्मुख उत्पन्न संकट पर भी चिंता व्यक्त की गई है. इस पुस्तक में लगभग सभी आयामों पर प्रकाश डाला गया है. पुस्तक संग्रहणीय है.
( पुस्तक के समीक्षक प्रमोद कुमार झा रांची दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक हैं और कला व साहित्य के राष्ट्रीय स्तर के मर्मज्ञ हैं।)