बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष :बुद्ध ने कहा – वर्तमान में सजग रहो, सचेत रहो, जागे रहो। ‘अप्प दीपो भव’ — स्वयं को अपने भीतर के प्रकाश से आलोकित करो। घृणा को प्रेम से मिटाओ। किसी भी अति में न जाकर केंद्र में रहो।
वाणी को शुद्ध करने के लिए उन्होंने पाँच दोषों को दूर करने का उपदेश दिया:
1. चुगली करना
2. निंदा करना
3. झूठ बोलना
4. कटु वचन बोलना
5. व्यर्थ बातें करना
बुद्ध के अनुसार, क्रोध हथेली पर रखा गरम कोयला है, जो अपने ही हाथ को जलाता है। लोभ को बन में लगी आग की तरह बताया, जिसे प्रेम और करुणा की शीतलता ही शांत कर सकती है।
बुद्ध को सम्यक् सम्बोधि मिल गई और अनेक लोगों का हित करने लगे। बुद्ध बोले, “अब मैं सबका हूँ।”
विरक्ति, त्याग और सहनशीलता की ऐसी ऊँची पराकाष्ठा कि उन्होंने बंधन को, तृष्णा को पहले ही कदम पर अस्वीकार कर दिया।
इसका एक उदाहरण है —
जब चन्ना बुद्ध के पास पहुँचा, तब वह यशोधरा का दिया हुआ फूल बुद्ध को देने लगा। तब बुद्ध रुके और अस्वीकार कर दिया।
इसका अर्थ यह नहीं कि उनका प्रेम कम हो गया था। बल्कि सांसारिक बंधनों से मुक्त हो चुके थे और ऐसा प्रेम करने लगे, जो कभी कम और कभी अधिक नहीं होता। अब उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष का भेद समाप्त हो गया था।
बुद्ध गया जी में वृक्ष के नीचे समाधि में डूबे हुए थे। उनके मुख का तेज चारों ओर फैल रहा था। ऐसा अद्वितीय प्रकाश, जो शब्दों में समेटा नहीं जा सकता। उन्होंने अंतिम सत्य को अपने अनुभव से जान लिया। अब वे केवल प्रकाश रह गए थे। अंतिम सत्य के साक्षात्कार के बाद कुछ शेष नहीं बचता। केवल धर्म बचता है। मौन बचता है। और मौन से बड़ा कोई आनंद नहीं।
बुद्धं नमामि। धम्मं नमामि। संघं नमामि।
बुद्ध पूर्णिमा यानी त्रिविध जयंती के इस पवित्र अवसर पर हम सम्यक सम्बुद्ध को नमन करते हैं। उनके बताए अष्टांगिक मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।
आज हम मौन रहें। ध्यान करें। उपवास करें। ओम नमो बुद्धाय। ओम नमो धम्माय। ओम नमो संघाय।सबका मंगल हो। सब सुखी हों। सबकी मुक्ति सधे।

(मृदुला दुबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकर हैं।)
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