मोह और दुख का कारण है काम-भोग

काम-भोग से तात्पर्य इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त सुख और वासनाओं की तृप्ति से है। यह दृश्य, श्रवण, स्पर्श, स्वाद और गंध के माध्यम से सुख का अनुभव करता है। है। इसमें भौतिक और शारीरिक सुख की प्रधानता होती है।

Written By : मृदुला दुबे | Updated on: December 24, 2024 9:10 pm

बुद्ध का दृष्टिकोण: भगवान बुद्ध ने काम-भोग को मोह, तृष्णा और दुख का मुख्य कारण माना। उन्होंने अपने उपदेशों में स्पष्ट किया कि इंद्रिय सुख क्षणिक होते हैं और अंततः दुख का कारण बनते हैं। उन्होंने कहा:

“काम तृष्णा ऐसा जाल है जिसमें फंसकर व्यक्ति बार-बार जन्म और मरण के चक्र में बंध जाता है।”

बुद्ध के उपदेशों का सार:

1. क्षणिकता: काम-भोग से मिलने वाला सुख स्थायी नहीं है। यह क्षणिक है और व्यक्ति को और अधिक पाने की तृष्णा में बांधता है।

2. बंधनों का कारण: काम-भोग लोभ, मोह और ईर्ष्या को बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति सांसारिक दुखों में उलझा रहता है।

3. त्याग का महत्व: काम-भोग का त्याग कर व्यक्ति ध्यान, साधना और आर्य अष्टांगिक मार्ग के माध्यम से निर्वाण प्राप्त कर सकता है।

4. पालि वाक्य: “हीनो गम्मो पोत्तुजनिको अनरियो अंत्थ सहितो।”

इसका अर्थ है, “काम-भोग निम्न, सांसारिक, अश्रेष्ठ और निरर्थक है।”

उदाहरण:

बुद्ध ने हिरण और शिकारी का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे हिरण लोभ में आकर शिकारी के जाल में फंस जाता है, वैसे ही मनुष्य काम-भोग में उलझकर अपने जीवन की शांति खो देता है।

भागवत पुराण और महाभारत में यायाति की कथा:

राजा यायाति का जीवन काम-भोग के परिणामों का उत्कृष्ट उदाहरण है।

1. शुरुआत: राजा यायाति ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह किया। विवाह के समय शर्त रखी गई थी कि यायाति अन्य स्त्रियों से संबंध नहीं रखेंगे।

2. भोग में लिप्तता: देवयानी के साथ उनकी दासी शर्मिष्ठा भी आई थी। यायाति शर्मिष्ठा से आकृष्ट हो गए और उनसे भी विवाह कर लिया।

3. शाप: इस व्यवहार से क्रोधित होकर शुक्राचार्य ने यायाति को जवानी में ही वृद्ध होने का शाप दिया।

4. भोग की असंतुष्टि:

यायाति ने अपने पुत्र पुरु से जवानी लेकर फिर से भोग-विलास का आनंद लिया। लेकिन वर्षों तक भोग करने के बावजूद उनकी वासनाएं शांत नहीं हुईं।

अंततः उन्होंने समझा कि “भोगने से तृष्णा घटती नहीं, बल्कि बढ़ती है।”यह अनुभव उन्हें वैराग्य की ओर ले गया।

बौद्ध शिक्षाओं का सार:

बुद्ध ने काम-भोग का त्याग कर जीवन को साधने का मार्ग दिखाया। उन्होंने आर्य अष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक विचार, सम्यक वाणी, सम्यक कर्म, सम्यक आजीविका, सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि) को अपनाने पर बल दिया।

उपसंहार:

काम-भोग भले ही क्षणिक सुख प्रदान करें, लेकिन ये व्यक्ति को स्थायी शांति और संतोष से दूर ले जाते हैं। चाहे वह बुद्ध के उपदेश हों या राजा यायाति का अनुभव, दोनों यही बताते हैं कि वासनाओं का अंत त्याग और वैराग्य में ही है।

( मृदुला दुबे योग प्रशिक्षक और आध्यामिक गुरु हैं।)

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