चाणक्य का जन्म लगभग 375 ईसा पूर्व में हुआ था। वे तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य थे और उन्होंने बालक चंद्रगुप्त को शिक्षा देकर एक शक्तिशाली सम्राट के रूप में स्थापित किया। उनका मुख्य उद्देश्य एक ऐसे भारत का निर्माण करना था जो विदेशी आक्रमणों से सुरक्षित हो।
चाणक्य की प्रमुख विशेषताएँ:
1. राजनीतिक दूरदर्शिता: चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की नींव रखते समय अद्वितीय राजनीतिक रणनीतियों का प्रयोग किया।
2. कूटनीति के ज्ञाता: वे यह भली-भांति जानते थे कि समय और परिस्थिति के अनुसार नीति कैसे बदली जानी चाहिए।
3. नीति शास्त्र के विशेषज्ञ: उनकी नीतियाँ आज के युग में भी प्रासंगिक हैं, जैसे — शत्रु को कमजोर कर के ही मित्र बनाना।
उदाहरण:
जब नंद वंश का अत्याचारी राजा धनानंद जनता पर अत्याचार कर रहा था, तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को प्रशिक्षित कर उसे गद्दी से हटाया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यह उनके साहस, दूरदर्शिता और संगठन कौशल का प्रतीक था।
चाणक्य नीति से दो प्रसिद्ध नीतिवचन :-
सर्पः क्रोधो न संप्राप्तो, दन्तः च न तु दारुणः।
विषं तु मन्यते लोकः, तस्मात् सर्पो भयङ्करः॥
साँप न तो गुस्से में है, न उसके पास दाँत हैं, फिर भी लोग उससे डरते हैं क्योंकि वह विषैला होता है। इसी प्रकार व्यक्ति की शक्ति छुपी हो, तो भी लोग उससे डरते हैं।
न चोरहार्यं न च राजहार्यं, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।
व्यये कृते वर्धते एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
विद्या ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई बाँट सकता है और न ही इसका बोझ होता है। यह खर्च करने पर बढ़ता है, और सबसे श्रेष्ठ धन है।
चाणक्य भारतीय इतिहास के एक अद्वितीय व्यक्तित्व थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि एक साधारण व्यक्ति भी अपनी बुद्धि, नीति और साहस से एक महान परिवर्तन ला सकता है। आज के युग में भी उनकी नीतियाँ नेतृत्व, प्रबंधन और नैतिकता के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।
(मृदुला दूबे योग शिक्षक और अध्यात्म की जानकार हैं ।)
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